Menu
blogid : 25540 postid : 1312071

आस्था या?

Awara Masiha - A Vagabond Angel
Awara Masiha - A Vagabond Angel
  • 199 Posts
  • 2 Comments

बचपन से सुनता आ रहा हूँ की अरे पूजा कर ले… भगवान  के आगे माथा तो टेक ले ! न तो मुझे कल समझ आया था न ही आज …..कि यह आस्था , भक्ति और पूजा क्या है ? अगर है तो क्यों ?….

जिन्दगी कि उलझनों को सुलझाते सुलझाते कब जवानी कि साँझ हो गई पता भी न चला और जब एक  दिन किसी के व्यंग ने मेरी आस्था पर सवालिया निशान लगाया तो दिल और दिमाग पूरानी यादों में जैसे खो गया ।….

यादों  के आँगन  में टहलते टहलते कब बचपन के दरवाजे पर पहुँच गया पता भी न चला ?

जिस स्थान पर मेरे जन्म हुआ और जिस  गली में  बचपन ने अपने कदम जवानी की तरफ बढ़ाये थे … उस गली में एक  पीपल का बहुत पुराना पेड़ था !किसी विशेष त्यौहार पर स्त्रियाँ उस पेड़ कि पूरे मनो भाव से और ध्यान लगा कर पूजा करती ,उसकी परिक्रमा करती और उस पीपल के पेड़ के इर्द गिर्द धागा भी बंधती ! मेरा बाल मन यह सोच सोच के अचंभित होता आखिर इस पीपल के पेड़ में आज क्या आ गया है ? कल तक तो इसके नीछे कुत्तो की  हुकूमत चलती थी , मौहल्ले  का कूड़ा यहाँ शोभा बढ़ता था …. आज इसकी किस्मत कैसे पलट गई ?


क्यों  किसी खास दिन यह भगवान  कि तरह पूजा जा रहा है ?

वक़्त गुजरा और हमने जवानी कि दहलीज पर अपना कदम रखा ! एक दिन नजर घुमा कर देखा तो पाया हमारे घर के सामने कि जिस जमीन  पर हम क्रिकेट खेलते थे उस स्थान पर कुछ लोग  हाथ जोड़े खड़े है….
पास  जाकर देखा तो पता चला ….कि यहाँ  पर साक्षात् भगवान प्रगट हुए हैं । …..

उनमे कुछ लोगो को हम पान बीडी कि दुकान पर  दिन रात खड़ा पाते थे और कुछ किसी कि दुकान के बाहर  खाट  पर लेट दिन दहाड़े कुम्भकर्ण के सम्बन्धी होने कि मुनादी करते !

हमारे नासमझ मन को यह समझ नहीं आया कि जिन्हें मंदिर तो क्या अपने घर का रास्ता भी याद नहीं ? जिन्हें यह भी पता नहीं कि घर में उनके बीवी बच्चे भी है ? उन्हें आज अचानक  भगवान के प्रति  अपने कर्तव्य बोध का ज्ञान कैसे हो गया ?….
वक़्त के साथ मूंछो ने दाढ़ी के साथ चेहरे पर जब अपना कब्ज़ा जमा लिया तब हमारा इंजीनियरिंग  में दाखिला हो गया और हम उस रहस्य को बिना सुलझाये अपने कॉलेज चले गए !…..

जब कुछ महीनो बाद हमारा वापस आना हुआ तो वहां  पर हमने एक  विशाल धार्मिक स्थल  का निर्माण होते पाया और वह  महान आत्माएं  जो कुछ महीने पहले तक अपने इन्सान होने का दावा झुठलाती  थी आज वह  सब इस धार्मिक स्थल के ट्रस्ट के लिए दिन रात जी जान से मेनहत कर रही थी!…

अब यह उनकी भक्ति का प्रताप कहे या उनके सद्कर्म  कि जो कल तक २५/५० पैसे के पान बीडी के लिए गिड़गिड़ाते  थे आज उनके सामने शहर के बड़े बड़े धनवान हाथ जोड़े खड़े थे और कुछ उनके पैरों पर  गिड़ गिडाकर धार्मिक स्थल कि शिला पट्टी पर अपने नाम को लिखने कि भीख मांग रहे थे….

ना तो मुझे कल समझा आया था… ना मुझे तब समझ आया ? यह क्या और कैसे हो गया ?

ना जाने वक़्त ने कब अंगड़ाई ली और हम देसी से विदेशी हो गए ! हमारे  यहां एक  धार्मिक स्थल  है और हमारी श्रीमती  हमें जबरदस्त खींच  खांच के इस धार्मिक स्थल पर  ले आती है यहां  पर पूजा करने वाले कर्मचारी को पूजा स्थल कि और से मासिक वेतन और अनेक सुविधा है…

जो लोग  पूजा के लिए आते है उन्हें धार्मिक स्थल  के नाम रसीद कटानी होती है और हर पूजा का रेट भिन्न भिन्न है आप अपनी श्रद्धा  से पूजा करवाने वाले कर्मचारियों के लिए एक  पेटी में टिप डाल सकते है पर उसके हाथ में कुछ नहीं दे सकते ?

हमारी श्रीमती जी किसी एक  ख़ास कर्मचारी से ज्यादा लगाव रखती है शायद वह  हमारे ही पैत्रिक स्थान से सम्बंधित है वह  हमेशा अपनी पीड़ा का प्रदर्शन इस तरह से करता कि हमारी श्रीमती जी सबकी नज़रें  बचा कर उसके हाथ में १०/२० डॉलर का एक  नोट थमा देती !…..

जिस देश में रिश्वत आप किसी को दे नहीं सकते और किसी से ले नहीं सकते क्योंकि कायदे कानून बहुत सख्त है …..


वहां  ईश्वर  को हाजिर नाजिर जानकर भक्त भी और पुजारी भी रिश्वत रूपी प्रसाद का आनंद लेते है और एक  नहीं ऐसे हजारो भक्त है जो इस पुण्य  को रोज कमाते और बांटते है !

इस गुत्थी को भी हम सुलझा नहीं पाए शायद आप में से कोई हमें समझा दे ?

By

Kapil Kumar

Note :-यांह पर पगट विचार निजी  है इसमें किसी कि भावना को आहात करने का इरादा नहीं है

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh