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हर बार जुदाई के नए नए सबब बन गए ,
कभी मेरी ख्वाहिशें तो कभी तेरा ग़रूर तन गए
यूँ तो हम रह नहीं सकते थे दो पल भी जुदा ,
फिर भी मिलते मिलते ना जाने कितने जन्म गुजर गए
अपने नाकाम इश्क़ की वज़ह से हम ज़माने में जुदा हुए
जब मरे तो जलकर इन फिजाओ में दोनों एक हो गए …..
तेरे इश्क में इस जग में बदनाम हुए तो क्या
पहले तो सिर्फ आम थे फिर ख़ास हो गए
यह और बात है की तूने भी मेरे इश्क की कद्र नहीं की
फिर भी हम गली गली आवारा आशिके आम हो गए ….
जो ना थे क़ाबिल भी तेरी सूरते दीदार को
वे इस ज़माने में तेरे खाविंद हो गए
कैसे की होगी हिमाक़त उसने तुझपे हुक्म चलाने की
हम तो बादशाह थे जो तेरे एक इशारे पे गुलाम हो गए…. .
अदावत थी इस ज़माने की हवाओ को भी हम से
जो चेहरा हमने छिपाया था चिलमनों के पीछे जतन से
वो हमारे हटते ही बाज़ारे आम हो गए
हमें रह गया इल्म एक नाकाम इश्क का बाँकी
वो जैसे सब हमारी रूह के नाम हो गए ….
By
Kapil Kumar
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