Menu
blogid : 25540 postid : 1313707

जीवन का रहस्य ?

Awara Masiha - A Vagabond Angel
Awara Masiha - A Vagabond Angel
  • 199 Posts
  • 2 Comments

जीवन क्या है और मनुष्य क्यों जन्म लेता है , क्यों उसकी म्रत्यु होती है और मरने के बाद क्या होता है ? यह सारे प्रशन ऐसे है जिनका कोई सही या गलत उत्तर , मानव शायद अभी तक खोज नहीं पाया है ….

पर कुछ छोटी छोटी बाते जिन्हें हम अपने जीवन में यूँही बोलते या मानते या अपनाते है बिना किसी कारण को जाने या समझे ..जैसे हिचकी आने पे कहना की …”कोई हमें याद कर रहा है” ..कहने को यह इक सामान्य सी बात है ..पर किसी का याद करना और हिचकी आने में क्या रिश्ता है ?.. इसी विषय की खोज के सन्दर्भ में  मेने कुछ अपने तरीके से आगे ब्लॉग में लिखा है ….

अभी कुछ दिन पहले हुई इक घटना ने मुझे जीवन को समझने का इक इशारा दिया ..शायद कुछ लोग इससे इत्तिफाक रखे और शायद कुछ इसे मेरे मन का वहम या कोरी कल्पना भी कह सकते है ….

मुझे नहीं मालुम आप में से कितने लोग अपने आस पास की होने वाली घटना को बड़ी गंभीरता से देखते , परखते और महसूस करते है …पर कभी कभी मेने महसूस किया की अचानक किसी खुसबू का झोका कंही से आया और चला गया …कई बार लगा शायद यह इक वहम हो या कोई आसपास से गुजरा हो …..पर हैरानी तब होती जब कोई भी ना तो आसपास होता और ना ही खुसबू का अस्तित्व महसूस होता ??….

ना जाने मेने कितनी बार अपने घर से दूर कभी ट्रेन में . तो कभी बस में तो कभी अपनी कार में बैठे महसूस किया की जैसे ..कोई खाना बना रहा है ..कभी कोई खुसबू या किसी सब्जी या दाल या रोटी की गंध इतनी तीव्र होती की लगता जैसे मैं किसी घर की किचन के पास बैठा हूँ ….

जबकी असलियत में …मैं इन सबसे दूर कंही रास्ते में किसी ऐसी जगह होता.. जन्हा किसी होटल , ढाबे या किसी भी खाने की चीज का नामोनिशान तक ना होता …..मुझे लगता यह मेरा वहम है ..पर हैरानी तब होती जब मैं घर पहुँचता तो देखता ..मेरे घर में वोही खाना बना है जिसकी गंध मेने अपने घर से बहुत दूर कंही महसूस की थी ….

कैसे और क्यों मुझे उस खाने की गंध इतनी दूर से महसूस हुई ?? यह राज मुझे अंदर से कभी डराता ..तो कभी उत्तेजित करता …आखिर क्या राज है इन सबके पीछे ??….वक़्त के साथ मेने इन सबकी जैसे जैसे आदत डाल ली थी …की इसका रहस्य कभी नहीं सुलझेगा …. आखिर यह बाते आप किसी भी आम या नार्मल इंसान को कैसे समझायेंगे?…वोह तो यही समझेगा की आप किसी वहम या बीमारी से ग्रसित तो नहीं ?….कंही आपका मानसिक संतुलन तो नहीं गड़बड़ा गया है ?

इक दिन रात में सोते वक़्त अचानक मुझे फिर इक खुशबु का अंदेशा हुआ ..मेरी हालत उन दिनों अजीब सी थी अलेर्जी की वजह से मेरी नाक अक्सर बंद रहती और मुझे कुछ भी सूंघने पर समझ नहीं आता था .. ..जब तक वोह वस्तु मेरी  नाक के काफी नजदीक ना हो ….पर इस वक़्त ना तो मेरी नाक बंद थी ..ना ही मै किसी नशे में ग्रस्त था और न ही मै सोया हुआ था …मुझे बहुत जोर से लघु शंका हुई और मै अपने बाथरूम की तरफ चला गया …..

लघु शंका से निपटने के बाद जैसे ही मैं बिस्तर पे लेटा तो मुझे ऐसा अहसास हुआ की घर में कोई कड़ाही में घी गर्म कर रहा है और घी की खुशबु पुरे घर में फैली है …मेने घडी को देखा तो रात के 3.30 बजे थे और घर के सब लोग गहरी निंद्रा में सोये हुए थे ….

घर में मैं , मेरा छोटा लड़का और  बीवी थी ..उनके कमरों से खर्राटो की आवज आ रही थी और पुरे घर में गुप्प अँधेरा था …फिर इस वक़्त घी की खुशबु कंहा से आ रही थी?? .. अडूस पडूस के घर इतनी दुरी पे थे ..की वंहा से किसी भी तरह की सुगंध का आना सम्भव नाथा .और ना ही कोई आस पास ऐसा घर  था जंहा देसी घी खाया जाता हो ….मतलब मेरे घर के आस पास अधिकतर घर चीनी , अमेरिकन ,जर्मन और वियतनामिज आदि लोगो के है …

खेर उस खुसबू का रहस्य भी अगले दिन खुल गया …जब मेने अपनी माँ को भारत में फोन किया… जो की मेरे वर्तमान घर (अमेरिका) से हजारो मील दूर है ….मेरी माँ ने बताय की उन लोगो ने घर (भारत ) में किसी मेहमान के आने पे घर में देसी घी की पुड़ी उसी ठीक वक़्त बनाइ गई थी …जिस वक़्त मुझे अमेरिका में रात को खुसबू आई थी ….पर यह रहस्य अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया जिसने मुझे मजबूर किया की मै जीवन के रहस्य को समझू ….मेने इसकी परिकल्पना और विवेचना अपने मानसिक स्तर के अनुसार इक  वैज्ञानिक धरातल पर की? ….

मुझे अधि रात को खुशबु का आभास कैसे हुआ और उसका क्या कारण है? उसे समझाने से पहले मुझे ..कई चीजे आप लोगो को समझानी होगी ..जिसे समझने के बाद ..शायद आप मेरी बात समझ पाए …मै जो भी लिखने जा रहा हूँ ..वोह सब मेरी सोच है …. मेने इस बारे में ना तो कंही इसे पढ़ा और ना ही किसी से इसे समझा …. बस जो मेरे दिल ने कहा मै उसे शब्दों में पिरो भर रहा हूँ …. मेरे लिखे हुए तर्क या  विवेचना कितनी सही या गलत है मुझे नहीं पता ….और मै यह भी बड़े विश्वास के साथ नहीं कह सकता …की ..इनका कोई वैज्ञानिक पहलु किसी ने अभी तक खोजा भी है या नहीं ?…..

जैसा की हम सब जानते और मानते है …की … मानव शरीर में कई इन्द्रियां है जैसे नाक , कान ,मुंह , मस्तिष्क ,आँखे ,हर्दय इन छह  इन्द्रियों को सब जानते है ….पर साथ में सोचने वाली बात यह है ….की अगर सारी इन्द्रिया इक साथ सक्रिय होती है ..क्या तब कोई इंद्री जगती है ..अगर हाँ तो वह कौनसी इंद्री है ?….मेने उसे कामवासना कहा है ….पर इसे अध्यात्मिक भाषा में हम आत्मज्ञान या हायर सेल्फ से रिश्ता या ज्ञानोदय (एनलाइटनमेंट) भी कह सकते है …..मेरे अनुभव के अनुसार मानव केवल  सम्भोग के वक़्त इतना भाव शून्य होता है ….की उसे सिर्फ सम्भोग के सिवा और कुछ ना दीखता है ..न सूझता है और ना वोह कुछ जानना चाहता ….सम्भोग के वक़्त सक्रीय इंद्री ..इक प्रचंड उर्जा का संचालन करती है …या इसे ऐसे भी कह सकते है …की उस वक़्त जगी इंद्री में प्रचंड उर्जा होती है …

अगर हम अपनी सामान्य मानसिक स्थिति में अपनी सब इन्द्रियों को इतना काबू में कर ले की हम सामान्य अवस्था में सम्भोग वाली स्थिति में चले जाये तो हम ..इस दुनिया के कुछ अनसुलझे रहस्य समझ सकते है ..

सबसे पहले हम यह समझे की सामान्य अवस्था में हम क्या देखते और समझते है ….आम तौर पे हम जब भी किसी चीज को देखते है या उसकी कल्पना करते है तब हम उसे अपने शरीर की दुरी की अनुसार देखते या समझते है …जिसे हम सीधी रेखा में देखना बोलते  है …यही सीधी  रेखा हमारे और उस वस्तु के बिच की दुरी निर्धारित करती है ..जैसे हमें सूरज , चाँद , तारे या आकाश में उड़ता हवाई जहाज सब बहुत दूर लगते है …इसी दुरी से हम शहरो या  देशो के बीच का फासला नापते है ….इसको हम लीनियर डिस्टेंस यानी रेखीय दुरी बोलते है ..

अब हम विषय की थोडा और गहराई में जाते है ..हमसे कोई कुछ दुरी पे बोले तो हम सुन लेते  है अगर वोह शक्श काफी दूर हो तो हम उसे नहीं सुन सकते …क्यों ?  ..बड़ा आसन जवाब है ..उसकी आवाज हम तक नहीं पहुँचती ..क्योकि हम उसे रेखीय दुरी से सुनना चाहते है और उसकी आवाज हमारे पास तक आते आते ख़त्म हो जाती है ..

पर आप इक तार वाले टेलेफोन से आप दूर से भी बात कर सकते है ….और उपग्रह की मदद से दूर देश में भी …इसमें सोचने की बात यह है .. ..की हम बात करते वक़्त अहसास नहीं होता की हम किसी से बहुत दूर से बात आकर रहे है …यह सब प्रक्रिया वैज्ञानिक भाषा में दूरसंचार कहलाती है ..जन्हा हमें भेजने वाले और रीसव करने वाले की बीच में कुछ नंबर के माध्यम से संपर्क स्थापित होता है …

अब हम बात करते है मानव शारीर की ..अगर गौर से समझे तो हमारे शारीर में इनबिल्ट ट्रांसमीटर और रीसवर है और हमारा भी टेलेफोन की तरह इक नंबर है ..पर इन सब को समझने के लिए हमें थोड़े अधिक गहरे में उतरना होगा ….

मेरे अनुभव के अनुसार ..हर मनुष्य अपना इक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम के साथ जन्म लेता है ..जिसे अध्यात्मिक भाषा में हम उस मानव का ओर यानी तेज बोलते है …हमारा और इक निर्धारित फ्रीक्वेंसी पैटर्न पे कंपन यानि वायबरेट करता है ….जिसे आप आम भाषा में अपना टेलेफोन नंबर भी कह सकते है …यंहा पे ध्यान रखने की बात यह है …की आपकी फ्रीक्वेंसी यानी आवर्ती आपके मूड , वयवहार ,खानपान और कर्मो के अनुसार बढती या घटती रहती है ..पर यह बढ़त या घटत इक सीमा से ज्यादा या कम नहीं होती …जिसे विज्ञानं की भाषा में हम स्पेक्ट्रम यानी फ्रीक्वेंसी बैंड भी बोलते है …

जब दो इन्सान इक दुसरे के फ्रीक्वेंसी बैंड को समझ जाए और उस बैंड के अनुसार सिग्नल यानी सन्देश भेजे तो ..उन दोनों में संपर्क स्थापित हो जाता है …हमारा औरा यानी तेज सिग्नल भेजने और रीसव करने के लिए ट्रांसमीटर और रीसवर का काम करता है ..

यंहा सबसे बड़ा प्रशन आता है की हम अपनी या दुसरे की औरा की आवृति कैसे जाने ? पहले आपको अपनी आवर्ती यानि फ्रीक्वेंसी समझनी होगी ..फिर दुसरे की कैसे जाने इसके लिए मैं आपको टेलेफोन डायरेक्टरी का कांसेप्ट सम्झायुंगा की कैसे इस जगत में भी इक ऐसी डायरेक्टरी है जिसमें सबकी फ्रीक्वेंसी पैटरंन स्टोर है …अपने औरा को जानना के बाद ही आप अपना इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम जान पायेंगे …इसे आगे अगले ब्लॉग में विस्तार से लिखूंगा ..अभी यंहा हम खुशबु के कारण को समझ ले …

अगर आप रेडियो सुनने के शौक़ीन है तो आपको पता होगा की हर स्टेशन के अपनी सेट फ्रीक्वेंसी होती है अगर आपने टुनर को जरा भी हिलाया तो स्टेशन गायब …स्टेशन सुनने के लिए हम बस उस फ्रीक्वेंसी पे अपना टुनर सेट भर करना है ….पर किसी दूर दराज की स्थिति को लेने के लिए हम उस स्थान की फ्रीक्वेंसी को अपने टुनर के साथ सेट करना होता है …इक पहुंचा हुआ साधक जनता है ..की जिस व्यक्ति से उसे संपर्क साधना है ..उसे वोह अपने औरा यानी टुनर पर कैसे लाये ….

अगर आपने कभी किसी कैसिनो मे किसी स्लॉट मशीन को देखा हो तो उसमे आप पासी डालते रहते है ..अगर आपका कोई कॉम्बिनेशन मिल जाता है तो आप को इनाम मिलता है …इसे आम भाषा में सही रोलर की पिक्चर का मिलना या साइंस की भाषा में फेज एलाइनमेंट बोलते है …

दिए हुए चित्र में स्लॉट मशीन का उधारन है ..यंहा पर हर कॉलम( स्तम्भ) में अलग तस्वीर है अगर सारे कॉलम इक सी तस्वीर होती तो आपका इनाम लग जाता … और इनमे भी इक शर्त है की कौनसी तस्वीर के मिलने से कितना इनाम ..कई बार कुछ विशेष तस्वीर जिनकी संख्या कम होती है मतलब जिनका आपने का प्रतिशत कम होता है ..उनके मिलने से सबसे बड़ा इनाम यानी जैकपोट लगता है …

बस यही जैकपोट लगना अध्यात्म में इन इंसान के इस ब्रहमांड से जुड़ना या किसी दुसरे इन्सान से जुड़ने जैसा है …अगर हम स्लॉट मशीन के प्रोग्राम को समझे तो कंही न कंही इसके कॉम्बिनेशन आने का तरीका भी लिखा होगा ..जिसे आम भाषा में समझना काफी मुश्किल है ..पर यदि उसे हम जान ले तो हम पहले से ही घोषणा कर सकते है ..की कितनी साइकिल यानी टर्न के बाद कौनसा कॉम्बिनेशन आएगा …

यंहा पर जो भिन्न कुलं में भिन्न चित्र है ..वोह हमारी मेरी भाषा में भिन्न भिन्न इन्द्रिया है और अध्यात्मिक भाषा में इन्हें हम चक्रा बोलते है ….जब सारे चक्र इक साथ अलाइन हो जाए तब यह स्थिति बनती है ..की हम इस जगत केउन अनसुलझे पहलु को समझ जाये ..जो इक आम इन्सान को कभी कबाक तुक्के से लग जाते है ..जैसे किसी का स्लॉट मशीन पे जैकपोट लग जाए ..

मनुष्य के मन  में उत्पन्न होने वाले विचार इक ऐसी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंग है जिसकी फ्रीक्वेन्सी इतनी अधिक होती है की उन्हें पैदा करने वाले शरीर का  मस्तिष्क  भी उन्हें उत्पन्न होने के बाद भी उन्हें पकड़ कर नहीं रख पाता कहने का अभिप्राय यह है की वह इंसान के मस्तिष्क से उत्पन्न न होकर उसके हृदय से उत्पन्न होते है जब तक मस्तिष्क उनपे कोई प्रतिकिर्या करे तब तक वह अपना रास्ता बदल चुके होते है

विज्ञानं के अनुसार अब तक मनुष्य ने जितनी भी तरंगो का स्पेक्ट्रम खोजाहै वह सब सिर्फ इक डायमेंशन के साथ सिर्फ इक डोमेन में चलती है जब की मन से उत्पन होने वाली तरंग हर दिशा,डायमेंशन और डोमेन  में चल सकती है …..

मनुष्य अपने जन्म से अपने खून के रिश्तो के साथ इक अद्रश्य धागे से बंधा होता है ..या उसे विज्ञानं की भाषा में कहे तो ..उसकी आवर्ती का टुनेर अपने खून के रिश्तो से ट्यून होता है ..जिसे आम आदमी आसानी से समझ नहीं पाता …पर जब दिल और दिमाग में जज्बातों का जवार आता है तब यह कनेक्शन खुद लग जाता है …या आप उसे अपनी इन्द्रियों को काबू में करके लगा सकते है …

इसलिए अधिकतर माँ का दिल किसी अनजानी विपदा से कंपता है तो उसे पहले ही आभास हो जाता है ..की उसका बच्चा कंही किसी विपदा में फंस गया है ….ऐसे ही अपने खून के रिश्तों से जुड़े लोग अगर कोशिश करे तो इक दुसरे के दिल और दिमाग की बात बिना उनके बोले समझ सकते है ….

प्रकृति ने जानवरों में यह खूबी भरी है …की इक शेर, हाईना , भेड़िया के झुण्ड का बच्चा ..अगर काफी दिनों बाद भी झुण्ड में आए तो उस झुण्ड के जानवर उसकी पहचान कर लेते है ….इसमें उनके अपने अलग तरीके है …पर मनुष्य इन सबमे श्रेष्ठ है और प्रकृति के बनाये कई रहस्य जिसे कई लोग जान चुके है ..पर जनता में आने से बचते है ….

Awara Masiha

Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental. Do not copy any content without author permission”

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh