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सती मैया की जय हो

Awara Masiha - A Vagabond Angel
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“इक बार,किसी ने कहा था की ,खून हमेशा पानी से गाढ़ा होता है, पर, जब यह गाढापन इक हद से ज्यादा बढ़ जाये,तो ,आकास्मिक और दुःख भरी मौत का कारण भी होता है !!””

संध्या , इक मध्यम वर्गीय परिवार की बहु थी …जो अपनी घर घ्रास्थी की गाडी, किसी तरह से खिंच खांच कर चला रही थी ….

भीड़ चलते चलते, इक शमशान के पास आकार रुक गई , शमशान के पास पहुँचने पर ….बच्चो और नवयुवको को शमशान के बहार रोक दिया गया .…वंहा पर कुछ गुंडेनुमा , दादा टाइप लोग , उस जगह के ठेकेदार बन धार्मिक रीती-रिवाज  से उस सती मैया को ,जिन्दे जी ,“चिता “ पे चढ़ाने की तैयारियों कर रहे थे! ….शमशान में  सती मैया को इक आसन पे बैठा दिया गया !!..

शमशान में इक बड़ी सी चिता की तैयारी शुरू हो चुकी थी….पहले, उस सती के पति को चिता पर रखा गया , फिर धार्मिक अनुष्ठान के प्रारम्भ होते ही, कुछ औरते सती होने वाली औरत को पकड कर उस चिता पर बैठाने ले जा रही थी … वोह नादान , अनजान , मासूम आने वाली जलन , तड़प , दर्द और खोफ से अनजान, किस जन्म को सुधारने के नाम पर, इस जन्म को बिगाड़ने जा रही थी ….जब वोह चिता पर बैठ गयी ..तो उसके इक हाथ को उसके पिता ने और दुसरे हाथ को उसके भाई ने पकड़ लिया ..ताकि उसका होसला बना रहे …उसकी माँ के आँशु अविरल बहे जा रहे थे ..पर परम्परा , संस्कार और धर्म की बेड़ी तोड़ने की उसकी हिम्मत शायद उसमे भी ना थी! ..वोह भी सती मैया के पेरो को छु, उनसे अपने पापो का प्राश्चित कर , उन्हें आशीर्वाद दे और ले कर ..अपना मुंह मोड़ कर बैठ गयी!!….

शमशान के बहार कुछ नौजवान लड़के , शोर शराबा करके इस घ्रणित कार्य की खुले आम आलोचना कर रहे थे और उस सती का नाम ले ..उसे वंहा से कूद –भाग जाने को उकसा रहे थे ….कुछ औरते मन ही मन दुखी थी और कुछ दबे ढके मन से औरत की इज्जत का खुले आम तमाशा देख अपने आँशु बहा रही थी ..तो कुछ हलकी सी आवाज में उन लोगो के इस काम पे उन्हें कोस रही थी …परन्तु यह सब , वंहा के ,शोर शराबे में दब कर रह गया था …जब जन्म देने वाले , बचपन में साथ निभाने वाले ही आप को नरक की आग में धकेल रहे हो और अपनी जिन्दगी को खुद लुटाने वाला ही बिना लड़े , हार मान रहा हो! तो,कोई , बचाने वाला भी क्या कर सकता  है ….??

जैसे ही आग की लपटे चिता से उठने लगी ..की उस औरत(सती मैया) का शरीर आग की तपस से झुलसने लगा …और वोह औरत , जलन की पीड़ा और दर्द से करहाने लगी ..उसकी आवाज सुन …वंहा इकठा लोग, जोर जोर से आवाज निकाल, ऊपर वाले के दिए,नेक शब्दों का दहन करने लगे … सती मैया का जोश काफूर हो चूका था ..उसे अब, असलियत महसूस होने लगी थी….वोह जलती चिता से भागने , कूदने की कोशिस करने लगी …उसकी घुटी घुटी चीखे , कराहे , तड़प और जलते शारीर की दुर्गन्ध भी उन जालिमो पे कोई असर ना कर सकी……उसके बाप और भाई ने उसे तब तक जकड़े रखा ,जब तक उसका शरीर चिता की आग में ठंडा ना हो गया……

खेल ख़त्म हो चुका था …सब लोग वापस अपने अपने घर जा रहे थे, की इक औरत संध्या के नजदीक आई और बोली …चलो मेरे साथ पुलिस स्टेशन और इसकी रपट लिखा दे….उसकी बात सुन संध्या जोर से हंसी और बोली …उसकी किस्मत अच्छी थी ,की ,वोह इक बार में जल कर मर गयी….

क्या ,तुम उनके बारे में भी रपट लिखाओगी ..जो रोज रोज इस आग में जलती है…और ऐसा कह वोह उस दिन की यादो में खो गयी …जिस दिन उसे जिन्दा सती बनाने की तयारी शुरू हुयी थी …..

संध्या के पिता ठाकुर शक्ति प्रताप, किसी सरकारी दफ्तर में मुंशीगिरी का करते थे! उनके ४ संताने , जिसमे २ लड़के और २ लड़की थी , संध्या उनमे सबसे छोटी थी …… , कहने को तो शक्ति प्रताप ठाकुर थे, वोह ,सिर्फ नाम के ठाकुर थे, उनमे ना तो ठाकुरों जैसा रोब , दादागिरी और ना ही अकड़ थी …वोह बड़े ही नेक, दयालु और ईश्वर से डरने वाले इंसान थे…अपने गावं की जमींदारी भी ,वोह इसी नेक नीयत के कारण गवां बैठे और दफ्तर में भी उन्हें काम के बोझ से खूब लादा जाता था….

जंहा , सरकारी दफ्तर का चपरासी भी नयी मोटरसाइकिल में आता,वंही अपने शराफत के लिए बदनाम ठाकुर शक्ति प्रताप ,किसी पुरानी घिसी पिट्टी साइकिल पे सवार होकर आते ..उनके दफ्तर वाले भी उनके रविये से खफा रहते और जो लोग अपना टेढ़ा काम , उनसे निकलवाने की जुग��� में सरकारी दफ्तर आते ,वोह भी, उनसे परेशान रहते!!…

ठाकुर ने शराफत करके ..थोडा बहुत नाम और इज्जत तो कमा ली ..पर उनके यह आदर्श घर परिवार को भारी पड़ रहे थे …घर वालो के यह ,समझ में ना आता , की इक ही दफ्तर में,इक ही काम  को करने वाले , दो आदमीयो की, घर घरस्थी में जमींन आसमान का फर्क क्यों है ?

ठाकुर साहब ने अपने सिधांत और आदर्श अपने बच्चो में भी अच्छी तरह से डाले …… पर वक़्त और जिम्मेदारियों की मार ने ,धीर धीरे ठाकुर के कंधो को बोझ तले दबा डाला …अपनी बड़ी लड़की की शादी करते करते , ठाकुर का प्रोविडेंट फण्ड ख़त्म हो गया … दोनों लडको को कुछ काबिल बनाने के चक्कर में ,ठाकुर शक्ति प्रताप की बची कुची जमा पूंजी भी धीरे धीरे रोज स्वाह हो रही थी ….

ऐसे में ठाकुर जब भी , अपनी छोटी लड़की संध्या को देखता ..उसका दिल भर आता ..वोह लड़की …अपने उम्र से तेज चलने वाली इक अल्हड , मस्त , नादान किशोरी थी ..जिसके सपने उसके कद और उसके घर की चार दीवारियो से बहुत बड़े थे!…अपने पिता की माली हालत से अनजान , वोह अपनी, आने वाली दुनिया के सपने संजोने में लगी रहती…. उसका इक ही सपना था, बड़े होकर डॉक्टर बनना और इस सपने को पूरा करने के लिए …उसने अपनी छोटी सी उम्र में ..मेडिकल की वोह वोह किताबे घोट मारी ..जिन्हें अच्छे अच्छे डॉक्टर ..ना पढने के हजार बहाने बना देते!! ….

आज, संध्या बड़े ही मनो भाव से अपने डॉक्टर बनने के एग्जाम का फॉर्म लेकर आई ..उसने बड़े ही चंचल मन से अपने पिता के आगे फॉर्म रख दिया और उसे भरने के लिए कहा ...ठाकुर शक्ति प्रताप ने जब फॉर्म देखा तो कुछ ना बोले और चुप चाप वंहा से उठाकर चले गए …

शाम का वक़्त था, ठाकुर और ठकुराइएन घर में अकेले बैठे ,आपस में घर ग्रास्थी की उलझनों के बारे में बाते कर रहे थे …की ठकुराइएन बोली …संध्या बड़ी हो रही है ..उसकी शादी के लिए कुछ हिसाब किताब किया है या नहीं ?….

ठाकुर ने लम्बी गहरी साँस ली और बोला …घर का खर्चा तुम्हे मालूम है, कैसे चल रहा है …दोनों लडको को भी, इधर उधर से लेकर देकर पढ़ा रहा हूँ की, कुछ काबिल हो जाये, तो, हाथ बटाने में मदद हो जायेगी!……इस संध्या के बारे में, कैसे सोचूं?? ..आज ही मेडिकल का फॉर्म लेकर आई थी ..अब उसे कैसे बोलू, की, मेरे पास तो इतना भी नहीं, की उसके फॉर्म के पैसे दे सकूं…..मेडिकल की पढाई तो सपने वाली बात है!! ..मुझे तो, उसकी शादी के लिए ही, कुछ जुड़ता नजर नहीं आ रहा!!……

शायद यह ठाकुर के संस्कार थे या उसका लडको के लिए प्यार,की वोह, लड़को का भविष्य, अपनी लड़की के भविष्य से पहले देख रहा था !…

यूँ तो, ठाकुर ने संध्या और उसकी बहन की परवरिश करते वक़्त दोनों के साथ कोई पाबंदी ना की थी ,पर बच्चो का भविष्य बनाने के मामले में ठाकुर , नए ज़माने के साथ अपने कदम नहीं मिला सका! …..

लगता है ,लड़के और लड़की का भेद, हमारे समाज में अच्छे खासे पढ़े-लिखे और संस्कारी लोगो में भी, किसी जींस दोष की तरह से आ चूका है !!

जब संध्या ने उससे मेडिकल फॉर्म के बारे में पूछा, तो, ठाकुर और ठकुराइएन दोनों ने ,साफ़ साफ़ कह दिया …..की उनक�� पास, उसे इतनी महंगी पढाई पढाने के लिए पैसे नहीं है और दुसरे वोह, कुवारी लड़की को इतने साल बहार, यूँही खुल्ला नहीं छोड़ सकते ?…..

संध्या के सारे सपने रेत के महल की तरह जमीन पर आ गिरे ..उसे समझ ना आया ..जो माता पिता कल तक उसे जी जान से चाहते थे ..अचानक लड़के और लड़की का भेद कब और कैसे सीख गए ??

संध्या ने अपना दिल मसोस कर, उस फॉर्म को, उस रात ही चुपचाप फाड़ कर फैंक दिया और अपने माता पिता को खुश करने के लिए सुबह उनसे झूट बोल दिया …की वोह तो मेडिकल का फॉर्म ,मैं यूँही ले आई थी ..मुझे डॉक्टर बनने का कोई शौक नहीं ….मैं तो, कोई बहुत बडी सरकारी नौकरी करुँगी!!… जिसके लिए ,उसे अभी कम से कम ग्रेजुएट तो होना पड़ेगा ..जो लोकल यूनिवर्सिटी से भी जायेगा ….उसकी बाते सुन घर वालो के सीने में चैन पड़ा और घर की रौनक ,फिर से वापस लोट आयी….

शायद,कभी कभी ,घर में उजाला देने के लिए ,किसी को अपने अरमान भी  जलाने पड़ते है !!!

पर उस दिन, उस मासूम को क्या मालूम था?…जिस घर की ख़ुशी के लिए उसने अपने सपने कुर्बान किये…..वोह घर, आने वाले भविष्य में ,उससे कितनी और क़ुरबानी मागने जा रहा था??…..

उस रात संध्या, चुपचाप अपने कमरे में अकेले पड़ी रोती रही ..उसके आँशु किसी को भी ना दिखाई दिए …शायद घर के लोग ,उन्हें देखना ही नहीं चाहते थे …उस दिन उसे, कुछ झूटी शाबाशी औए थोडा माता पिता का लाड जरुर मिला ..जिसमे उनके उस अंतर्द्वंद का कंही न कंही अंत छिपा था,जो मेडिकल फॉर्म के आने से शुरू हुआ था!!……

वक़्त का पहिया अपने समय से घुमने लगा …संध्या ने अपने मन को समझा कर ..ग्रेजुएट होने का इंतजार बड़ी शिद्दत से करना शुरू कर दिया….की कब उसका ग्रेजुएशन हो और कब वोह , देश की सबसे बड़ी जॉब के लिए तयारी शुरू करे!! ….

पर शायद, किस्मत को, उससे, कोई पुराना बैर था ..वोह जब भी मुस्कुराने का बहाना ढूंडती , बदकिस्मती उसके दरवाजे पे आकर दस्तक दे जाती!!….

कॉलेज में ग्रेजुएशन का फाइनल ईयर था और संध्या ने आने वाले कम्पटीशन के लिए, अपनी तैयारी, पुरे जोश और खरोश में करनी शुरू कर दी …की ..इक दिन अचानक ठाकुर शक्ति प्रताप को दिल का बहुत तेज दौरा पड़ा …. उनहे आनन् फानन में हॉस्पिटल ले जाया गया …ठाकुर के लड़के नयी नयी नौकरी में लगे थे …तो तिरमदारी की सारी जिम्मेदारी फिर संध्या के कंधो पर आ गिरी …उसे ही अपने एग्जाम के वक्त, पढाई की जगह, अपने पिता की तिरमदारी और दवाई आदि देखनी पड़ती …. ठाकुर हॉस्पिटल से तो वापस आगया ..पर साथ में, संध्या के भविष्य के लिए थोडा सा अँधेरा भी ले आया … अब ठाकुर की हालत ऐसी ना थी, की वोह ज्यादा दिन , इस दुनिया में आराम से बीता सके …घर आते ही ठाकुर को संध्या की शादी की चिंता सताने लगी …उसे लगता की मेरे होते,अगर इसकी शादी हो जाये तो वोह मुक्ति पा लेगा!! …

सबसे बड़ी समस्या थी ,की ,लड़के तो संध्या के लिए हजारो थे पर …मामूली सी शादी करने का, जो जोड़ तोड़ भी, ठाकुर के लिए भारी था …पहले ही कंगाली में आटा गिला था,उस पर ,इस बीमारी ने उसे कंगाल और कमजोर बना दिया था !!….

आज ठाकुर, अपने रूटीन चेकअप के लिए ,हार्ट स्पेशलिस्ट से मिलने , संध्या क�� साथ हॉस्पिटल जा रहा था ..डॉक्टर ने, ठाकुर का मुआयना करते हुए ,उसे हिदायत दी ..अगर उसने आराम ना लिया और ज्यादा तनाव लिया , तो उसे फिर से अटैक आने का खतरा है!!….

डॉक्टर की बात सुन, ठाकुर इक फीकी हंसी में बोला ..डॉक्टर ..कौन साला अब जीना चाहता है ..और संध्या की तरफ इशारा करके बोला ,बस मेरी बेटी के हाथ पीले हो जाते, तो मैं चैन से मर पाता!!!….

ना जाने किस उत्सुकता में …डॉक्टर ने संध्या को देखा और बोला ..तुम्हारी बेटी तो आज कल के बेटो से भी ज्यादा समझदार,आत्मविश्वासी और लायक  है , भला ,इसके लिए लडको की तुम्हे क्या कमी ?ठाकुर इक फीकी हंसी हँसते हुए बोला , डॉक्टर , मेरी हालत अब तूमसे क्या छिपी है ?…मेरे पास आज कुछ भी नहीं ..जो इसे विदा कर सकू ..मुझे यह चिंता दिन रात खाए जा रही है!! ….

ना जाने किस जोश में, डॉक्टर बोला ..अगर तुम बुरा ना मानो तो, अपनी लड़की की शादी मेरे लड़के से कर दो!! …

मैं तुमसे, कुछ ना छिपाऊंगा …मेरा लड़का थोडा सा नादान है… ..शायद उम्र और यारी दोस्ती का असर है, पर दिल से बहुत अच्छा है ….मुझे विश्वास है, तुम्हारी लड़की,अपनी सेवा और संसकारो से ,मेरे लड़के को इक अच्छा आदमी बना देगी!! …..

बातो ही बातो में डॉक्टर ने संध्या से उसकी मर्जी भी पूछ डाली ..अब इक संस्कारी लड़की, दो बुजर्गो के बीच क्या बोलती ..उसने सोचा यंहा कुछ कहना सही नहीं होगा , कंही डॉक्टर बुरा ना मान जाये ..घर चलकर अपने पिता को बता देगी.. की ..उसे कोई और ओर पसंद  है…..वोह उसकी शादी की चिंता ना करे!! ….

संध्या की चुप को, दोनों ने हाँ समझ, तुरन फुरंत में रिश्ता , हॉस्पिटल में ही पक्का कर डाला!!…..

संध्या चाह कर भी कुछ ना बोल सकी …उसने सोचा, घर चलकर , अपने पिताजी से बात करेगी …जब बाप बेटी , दोनों घर आए, तो , ठाकुर ने चहकते हुए यह खबर घर वालो और कुछ रिश्तेदारों में भी सुना दी …शायद ठाकुर ने , अपने जीवन में, कभी उम्मीद ना की थी, की उसकी लड़की इतने बड़े घर में ब्याही जायेगी!! ……

संध्या अपने अरमानो का खून होते देख रही थी , कोई भी, उसके दिल की बात को सुनने को तैयार ना था…..की इक दिन , उसकी ,मौसी घर आई ….मौसी ने आकर ठाकुर और ठकुराइएन को आड़े हाथो लिया ..और बोली …अरे , जीजाजी , आप , अपनी बेटी को क्यों कुए में धकेल रहे है?…

ठाकुर के पेरो तले जमींन निकल गयी …अपनी जिम्मेदारी की मुक्ति के जोश में, वोह होश खो बैठा था!….पर लगता था, उसका खानदानी खून, अब हिल्लोरे मारने लगा …वोह बोला …जीजी …अब बात पक्की हो चुकी है , सब रिशेदारो को पता चल चूका है ..ऐसे में रिश्ता तोड़ने से, मेरी बहुत बदनामी होगी …..और लड़के तो, थोड़े बहुत सब ऐसे ही होते है …हमारी संध्या तेज है , समझदार है…. वोह कैसे भी करके उस लड़के को सुधार लेगी ..अब आप कृपा करके ,इस रिश्ते को मत बिगाड़ो!!…..

संध्या ने जब यह सुना तो , उसे विश्वास ना हुआ की….

अपने जन्म देने वाले ���ाता पिता , क्या अपने स्वार्थ में इतने मशगूल हो सकते है की वोह अब सही और गलत का फैसला भी ना कर सके ??…

उसकी बची कुची हिम्मत भी जबाब दे गयी …उसे लगा , अब जो होगा देखा जायेगा …..ज्यादा से ज्यादा , इस शरीर को छोड़ ऊपर वाले के पास चली जाउंगी !!….

जैसे जैसे शादी की तारीख नजदीक आती गयी , संध्या की सांसे अटक अटक के चलने लगी , उसकी रातो की नींदे उड़ने लगी , उसने जो जो सपने संजोये थे , वोह सब मिटटी में कब के मिल चुके थे ……. शादी वाले दिन , जब उसकी कुछ सहेलियों ने बताया , यह लड़का तो कॉलेज में बहुत फ़्लर्ट करता था , और कुछ लडकियों के साथ सो भी चूका था ……संध्या का मन कांप उठा ..उसने अपनी माँ,बहन और भाई के आगे हाथ जोड़े , गिडगिड़ाई , की किसी तरह से , यह शादी ना हो ..पर सब अपने अपने फायदे और नुकसान में इतना मस्त थे , उन्हें संध्या का दर्द दिखलाई ही नहीं दिया!!…..

संध्या ने घर से भागने का इरादा कर लिया और कुछ कपडे इक सूटकेस में पैक कर लिए ..अचानक उसका भाई कमरे के अन्दर आया ..तो ,उसने संध्या के इरादों को तुरंत भांप लिया और बोला , ठीक है तू भागना चाहती है तो भाग ..पर इसके बाद, इस घर से मेरी और पिताजी की लाश निकलेगी , इस बदनामी के बाद , हम जिन्दा न रह पायेंगे ….

संध्या निढाल बिस्तर पर गिर गयी ..थोड़ी डेरा बाद , संध्या का इक हाथ ठाकुर शक्ति ने तो दूसरा हाथ उसके भाई ने पकड उसे शादी के मंडप में बिठा दिया ….मन्त्र  होते रहे और इक औरत , हवन कुंड की आग में, अपने सपनो और उम्मीदों के साथ ,जिन्दा सती हो गयी !! ….

अपने ख्यालो से निकाल संध्या जल्दी जल्दी घर पहुंची तो , घर के दरवाजे के पास ,उसका पति इंतजार करता मिला ..उसने लाल लाल आँखों से उसे घूरा और बोला …तुझे  कितनी कितनी बार समझाया, की, जब मैं घर आऊ, तो तू घर पे होनी चाहिए …चल अन्दर चल ,आज तेरी अच्छे से खबर लेता हूँ ….संध्या थोडा सा डरी, फिर अपनी हिम्मत बटोर अन्दर चली गयी…उसे पता था , उसका पति , दो चार थप्पड़ , जुत्ता मारेगा , फिर उसके शरीर को रोंदेगा और फिर उससे लिपट , माफ़ी मांग के सो जायेगा ….संध्या बिस्तर पे लेटे लेटे यही सोच रही थी कि!!!…..

मजहब चाहे कोई भी हो, कुर्बान सिर्फ औरत ही होती है, चाहे फेरो के हवन कुंड में अपने अरमानो के साथ सती बन के या निकाह के परदे के पीछे घुटन भरी जिन्दगी के कफ़न में लपेट दी जाती है या किसी और में?”

By

Kapil Kumar

Awara Masiha

Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.’

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