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फिर जन्म लेंगे हम!

Awara Masiha - A Vagabond Angel
Awara Masiha - A Vagabond Angel
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संवत 1537, मास कार्तिक, दिनांक 25…..शाम ढलने लगी थी …अगले दिन दीपावली का त्यौहार था….

केतकी  अपनी नयी पोशाक को देख कर मन ही मन हर्षित हो रही थी …भगवान् ने उसके साथ रूप रंग और गुणों में पूरा न्याय किया था ...उसके जैसी सुंदरी आस पास 100 कोसो तक नहीं थी! उसके ज्ञान को देख बड़े बड़े पंडित अचंभित हो जाते थे… वेद, पुराण , उप्निशेद , रामायण , गीता उसे सब कंठरस्थ थी … उसके हाथ की जड़ी बूटिया का इलाज पुरे गावं में मशहूर था ….

केतकी ना जाने उस ज़माने में कौन सी ज्ञान विज्ञानं की आधुनिक बाते करती थी जो लोगो के समझ में ना आती पर उसके विद्ता का लोहा हर कोई मानता था ….इतनी सारी खूबियों होने के बावजूद ना जाने उसका मन कपिल ,जैसे इक साधारण लड़के पे मचलता था……

यूँ तो भगवन ने केतकी पे ज्ञान और रूप की पूरी दया की थी पर इक कमी थी जो केतकी का मन कभी कभी हल्का कर देती … केतकी की माँ उसके जन्म के कुछ साल बाद चल बसी थी! केतकी हमेशा कपिल की माँ में अपनी माँ देखती और सोचती इक दिन मै इस घर की बहु बनकर आउंगी तब उनकी पूरी सेवा करुँगी और अपनी ममता की कमी पूरी कर लुंगी …

कपिल इक साधारण सा युवक था….जो अपनी माँ का इक मात्र सहारा था….बचपन में ही उसके पिता उन दोनों को जंगल में कंही अकेला छोड़ कर चले गए थे ….कपिल गावं में इक छोटी सी दुकान चलाता था…. और मन ही मन केतकी को जी जान से चाहता था….पर उसके रूप और ज्ञान के आगे अपने को छोटा समझ कभी उसके आगे अपने प्रेम को स्वीकार ना कर पाता था….

यूँ तो केतकी सर्वगुण संपन थी पर उसकी नटखट पन और शरारत करने की आदते पुरे गावं में मशहूर थी…. जिन जिन लोगो से उसे चिढ हो जाती….कभी उनकी भैंस खोल खेत में छोड़ देती…. तो कभी किसी के गाय के बछड़े को गाय के आगे दूध पिने के लिए छोड़ देती… तो कभी किसी की मुर्गी के दबड़े को खोल मुर्गी भगा देती ….उसकी इन शरारत और उद्दंडता से गावं वाले परशान रहते पर कुछ ना कहते!

क्यूंकि जब भी किसी को मदद की जरुरत होती तो केतकी सबसे पहले वंहा होती… किसी को तालाब से पानी मांगना हो या अपने चौका बर्तन में मदद हो या फिर कुछ और? सारे गावं में मशहूर था की केतकी कपिल को चाहती है …कपिल और  केतकी का रिश्ता बिना किसी औपचारिकता के कपिल की माँ और केतकी के पिता को मंजूर सा था… पर उसपे कोई सामाजिक स्वीकृति अभी तक नहीं लगी थी…

केतकी, कपिल को जब भी देखती ..कपिल के सामने इक दम अलग रूप में हो जाती उसका नटखटपन और शरारते ना जाने कंहा काफूर हो जाती ….. वोह हमेशा सोचती कभी वोह दिन भी आयेगा?  जब कपिल उससे अपने प्रेम का इजहार करेगा…तब वोह उसकी खूब खबर लेगी! ……

आज केतकी अपनी नयी घाघरा चोली में संज सवंर के दर्पण के सामने खड़ी थी …उसकी सुन्दरता देख दर्पण भी शरमा रहा था… हलके अंधरे में उसका गोर वर्ण चांदनी की भांति दमकता था…. आज उसके रूप का योवन अपने पुरे उफ़ान पे था…. उसना सोचा जाकर कपिल की माँ से मिल आंऊ और इस बहाने अपनी नयी घाघरा चोली के दर्शन कपिल को करा कर उसको थोडा सा झटका दे दू. .. देखू कितने दिन यह मुर्खदास मेर रूप की आग से अपने को बचाता है?…..

अभी अभी केतकी घर से बहार निकली ही थी की सामने से कपिल आता दिखाई दे गया! केतकी… कपिल को आता देख रास्ते में पड़ने वाले इक जामुन के पेड़ पे चढ़ गयी और जैसे ही कपिल पेड़ के निचे से गुजरा उसके ऊपर उसने इक जामुन देकर मारा…. कपिल इधर उधर देख रहा था की उसे किसने क्या और कान्हा से मारा…. केतकी मन ही मन हंसी और फिर 2/3 जामुन इक साथ मारे…. अब कपिल को माजरा समझ आगया था की कोई पेड़ से उसे मार रहा है पर शाम का वक़्त होने की वजह से उसे साफ़ साफ़ दिखलाई नहीं दे रहा था …

अचानक कपिल को यूँ इधर उधर देख केतकी शरारत में पेड़ से कूद उसके सामने आकर खड़ी हो गयी और उसे जीभ निकाल कर चिढाने लगी ….. अचानक केतकी को सामने इस रूप में देख कपिल हक्का बक्का रह गया….केतकी की शरारत ने उसके अन्दर का छिपा केतकी के प्रति प्रेम जाग्रत कर दिया और कपिल ने हिम्मत कर केतकी का हाथ पकड लिया और बोला..  तो…. यह भूतनी थी, जो पेड़ पे चढ़ कर मुझे जामुन से मार रही थी और मै डर के मारे मरा जा रहा था…. मुझे लग रहा था इस पेड़ पे कोई नया भूत आ गया है …

कपिल का हाथ पकड़ने से केतकी शारीर में इक बिजली सी दौड़ गयी.. उसकी सांसे तेज तेज चलने लगी और उसका वक्ष स्थल अपनी सांसो के साथ ऊपर निचे होने लगा ….केतकी शर्म से सिंदूरी हो अपनी नजरे निचे कर कपिल के सामने खड़ी हो गयी और उससे अपना हाथ छुड़ा कर बोली….बुद्धू कंही के और अपने घर की तरफ भाग गयी ….आज से पहले तक कपिल, केतकी के सामने हिचकता था पर उसकी इस अदा ने उसे साहस और होसला दे दिया और वोह भी केतकी के पीछे पीछे भाग लिया…..

केतकी अपने घर में घुस दिवार की ओट से गली के बहार देखने लगी … उसकी साँस बहुत तेज तेज चल रही थी ख़ुशी और उत्तेजना में उसका बदन कांप रहा था…. आज से पहले कपिल ने उसे नजर उठाकर देखने में भी कंजूसी की थी और आज तो कपिल ने उसका हाथ पकड़ लिया था…. अचानक कपिल पीछे के रास्ते आकर गली के बहार झांकती केतकी के पीछे खड़ा हो गया … अचानक किसी की सांसो की आवाज सुन केतकी चोंक उठी…. जैसे ही उसने पीछे मुड़ के देखा तो कपिल खड़ा था …उसे इतना करीब देख वोह जड़ सी हो गयी….

कपिल ने उसके दोनों हाथो को अपने हाथो में लेकर कहा…..

केतकी.. तुम्हारे जैसी रूपवती, मृदभाशी, संस्कारी और ज्ञान की देवी मुझ जैसे इन्सान को चाहे ,यह इक सपना जैसा है … मैं तुम्हारे योग्य तो नहीं…. पर जीवन में तुम्हे कोई भी कष्ट तुम्हारे नजदीक ना आने दूंगा तुम्हे इतना प्रेम दूंगा की मेरा प्रेम तुम्हे दुनिया में किसी के भी प्रेम से कम ना लगेगा….

उसकी यह बात सुन केतकी के मन में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी और उसने अपना हाथ कपिल के मुंह पर रख दिया और बोली…. बस अब और न कहना…. वरना मैं मर जाउंगी! …अमावस्या की रात में भी..सिर्फ इक दिये की रौशनी में  .. केतकी का गोर वर्ण उसपे सज्जित गहनों से किसी अप्सरा की भांति चमक रहा था.. ..

अचानक, कपिल को ना जाने  क्या सुझा? उसने केतकी को अपनी बांहों में भर उसे चूमना शुरू कर दिया …केतकी ने अपनी तरफ से उसे समझाने की कोशिस की…. जब तक दोनों का विवाह नहीं हो जाता तब तक यह अनुचित है! …

पर कपिल के सर पे चढ़ा वासना का भूत या केतकी के सोंद्रय का जादू या अपनी अभी अभी दूर हुयी हिन् भावना की विजय ने उसे इतना मजबूर कर दिया की, उसे अपने ऊपर नियंत्रण ना रहा… उसकी पकड़ केतकी पे कसती चली गयी … थोड़े से विरोध के बाद केतकी ने भी आत्म समर्पण कर दिया…. और दोनों ने वोह गुनाह कर डाला! जो उस सामाज में सबसे आवांछित कार्य था …

तूफ़ान के गुजर जाने के बाद दोनों शर्मिंदा महसूस कर रहे थे और कपिल, केतकी को दिलासा दे रहा था की वोह जल्दी से जल्दी उससे विवाह कर लेगा…. उसकी नादानी की वजह से यह सब हुआ है …अचानक किसी के कदमो की आवाज सुन दोनों चोंक उठे…. देखा कमरे के बहार केतकी के पिता जड़ बने खड़े हो कर उनकी बाते सुन रहे थे!…

केतकी, पिता को सामने देख शर्म से गड गयी और उनके पेरो में जा गिरी … कपिल ने केतकी के पिता के चरण पकड़ कर कहा….

यह अपराध उसके कारण हुआ है .. इसमें केतकी का कोई दोष नहीं …जो भी सजा देनी है वोह उसे दे! …केतकी पूरी तरह निर्दोष है!…..

केतकी के पिता के आंसू झर झर बह रहे थे ….वोह बोले…. हमने जब तुम दोनों का विवाह लगभग निश्चित कर दिया था…. फिर भी तुम दोनों से अपनी भावनाओ पे नियंत्रण नहीं रखा गया…. केतकी….तुमने आज मेरी दी हई आजादी, शिक्षा और संस्कार का मजाक बना कर रख दिया…..

तुम दोनों का गुनहा माफ़ी के काबिल नहीं… तुम दोनों सात जन्मो तक इस प्रेम ले लिए तड़पोगे…. यह मेरा श्राप है! ….

कपिल…. तुम्हे किसी भी जीवन में कभी भी किसी स्त्री का प्रेम नसीब नहीं होगा… तुम, जिसे भी प्रेम करोगे, वोह तुम्हारी जिन्दगी का हिस्सा नहीं बन पायेगी!… कभी तुम्हारे हालत, कभी तुम्हारे जज्बात तुम्हे उससे दूर ले जायेंगे … अगर तुम किसी का प्रेम पा भी लोगे ,तो ,उसे कभी भी शांत मन से महसूस नहीं कर पाओगे …यही तुम्हारी सजा है!…..

केतकी …तुम्हे हर जीवन में इतना ज्यादा प्यार मिलेगा जो तुम्हे ख़ुशी के बजाय तुम्हारा दम घोट देगा … तुमसे प्यार करने वाला हमेशा तुमसे कुर्बानी मांगेगा और वोह कुर्बानी हर जन्म में बेकार जाएगी! तुम अपना प्यार बाँटने के लिए तड़पोगी, रोयोगी, गिद्गिदोगी पर कोई भी नहीं पसीजेगा….

तुमने आज कपिल के आगे अपने कमजोर चरित्र का परिचय देकर यह सिद्ध किया है की मेरी परवरिश में कंही कमी रह गयी थी!… मैं उसका प्याश्चित करूँगा!

पर तुम्हे हर जन्म इक मजबूत चरित्रवान स्त्री के रूप में जन्म लेना होगा और अपने चरित्र की वजह से हमेशा दुखो में डूबे रहना होगा…..

कपिल और केतकी जो अपनी नादानी में इक बड़ी भूल कर बैठे थे अब सिवाय रोने के क्या कर सकते थे … दोंनो केतकी के पिता के पैरो में पड़ गए और बोले हमसे वोह अपराध हो चूका है जिसकी कोई माफ़ी नहीं और इसको छमा भी नहीं किया जा सकता…..क्या हमारी गलती सुधारने का कोई भी विकल्प नहीं?….केतकी के पिता ने कुछ ना कहा और अपने आंसुओ से अपने वस्त्र भिगोते रहे! …….

रात आधी हो चुकी थी …

कपिल, जब घर ना आया तो उसकी मां उसे धुंडते हुए केतकी के घर आ पहुंची…. वंहा के हालत देख’ उसका दिल बैठ गया …. जब उसे सारी बात का पता चला तो वोह अपना क्रोध रोक ना पाई और कपिल को श्राप देते हुये बोली…

जिस माँ की ममता की इज्जत… तूने अपने जवानी के जोश में नहीं की…. वही ममता…. तुझे किसी भी जीवन में अब नसीब नहीं होगी!…..अपनी माँ के पास रह कर भी तू उससे दूर रहेगा और जब दूर होगा तो तेरी माँ अपनी ममता उडेलेगी जो तेरे किसी काम की ना होगी ……

केतकी के पिता ने जब यह सुना तो उनका क्रोध विषाद में बदल गया.. वोह दूर से चिल्लाये….यह आपने क्या कर दिया?

मेने पहले ही इन्हें इनके कार्य के लिए श्राप दे दिया था और अब आपने कपिल को और दंड देकर उसके आने वाले सात जन्मो में हमेशा हमेशा के लिए जहर डाल दिया …

तीर कमान से निकल चूका था…. कपिल की माँ को लगा शायद उसने ज्यादा बड़ा दंड दे दिया! उसने अपने आंसुओ से अपना दामन भिगो डाला और कपिल को अपने गोद में लेकर बोली …शायद किसी दिन तेरी प्रेमिका… तुझे किसी जन्म में मिल जाये… जो तुझे माँ, प्रेमिका और इक सखा का साथ दे.दे…यही मैं भगवान से दुआ कर सकती हूँ!….

केतकी के पिता ने आकर जमीन पर लेटी केतकी को उठाया और बोले केतकी ….तुमने हमारी परवरिश और संस्कार का अपमान किया है….इसलिए तुम्हे यह घर छोड़ कर जाना होगा….तुम कपिल से कल विवाह करोगी और उसके बाद कभी अपना चेहरा हमें नहीं दिखाओगी! …और ऐसा कह वोह अन्दर चले गए…..

कपिल और केतकी अपने कृत्य से इतने विचलित, दुखी और निराश थे ….की जीवन उनके लिए अब महत्वपूर्ण ना था… दोनों ने इक दुसरे को देखा और आँखों ही आँखों में इक गहरा निश्चय लिया …

कपिल ने केतकी का हाथ पकड़ा और दोनों गावं के बाहर निकल गए … कपिल की माँ और केतकी के पिता ने जब दोनों को घर से बहार जाते देखा तो उनका माथा ठनका… दोनों पीछे से सिर्फ उन्हें पुकारते, पुचकारते, माफ़ी देते रह गए …पर दोनों दीवानों को अब कुछ सुनाई और दिखाई नहीं दे रहा था…..

दोनों गावं के इक निर्जन कुये के पास पहुँच गए … कपिल ने केतकी का हाथ पकड़ा और कुए में छलांग लगाने के लिए तैयार हो गया … जैसे ही दोनों इक साथ कुए में कूदने वाले थे की केतकी के सामने उसके पिता का मासूम चेहरा आ गया और उसने कपिल का हाथ झटक दिया और कुये से पीछे हट गयी…. पर…तब तक कपिल अपना मन बना चूका था और कुए में कूद गया…..

जब केतकी को होश आया तो उसकी दुनिया लूट चुकी थी, उसे इस समाज, संसकारो और परम्पराओ ने अन्दर तक झिंझोड़ दिया था … उसने चुप चाप अपने थोड़े कपडे लिए और वोह गावं हमेशा हमेशा के लिए छोड़ दिया और किसी आश्रम में जाकर सन्यासन बन गयी……..

नॉएडा दादरी से 25/30 कोस दूर दनकौर के पास गावं “वेदपुरा” में आज भी इक निर्जन वीरान स्थान पर वोह कुआँ अपने अस्तित्व की आखरी लडाई लड़ रहा है…. जिसके पास इक बड़ा सा पीपल का पेड़ आज से करीब 200 साल पहले उग आया है….

आज भी वोह कुआँ कपिल और केतकी के वापस आने की बाट जोह रहा है! शायद किसी दिन वोह मासूम आत्माए वंहा जाकर अपने श्राप से ……..मुक्ति …….ले सके!………….

By

Kapil Kumar

Awara Masiha


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