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काम वासना!

Awara Masiha - A Vagabond Angel
Awara Masiha - A Vagabond Angel
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शाम ढलने लगी थी …चिडियों की चहचाहट अपने चरम पे थी… जैसे वोह आपस में इक दुसरे को दिखाना चाहती थी ..की… किसने आज ज्यादा तिनके इकठा किये और कौन उनमे से जल्दी से अपना घोसला बना लेगी ! …..

हलकी हलकी शीतल पवन की लहर ….सुहानी शाम में इक मदहोशी पैदा कर रही थी …ऐसे में… दिन भर की थकान से थका, आर्यपुत्र कपिल अपने घर के आँगन में पड़े झूले पे लेटा हुआ मन ही मन अपने जीवन का आंकलन कर रहा था!….

उसका ह्रदय … अन्दर ही अन्दर सोच सोच के प्रसन्न होता और इक हलकी सी मुस्कान के साथ उसकी आँखे चमक जाती …

कुदरत की कृपा से ..उसे जीवन में ऐसी कोई पीड़ा या कष्ट ना था …जो उसे जीवन में विषाद या निराशा की आहट भी देता ….

मृदुला” को देख होती थी ….

में वोह सब गुण थे ..जो किसी स्त्री की परिभाषा लिखने के लिए प्रयोग में आते थे ….गायन वादन, न्रत्य , श्रृंगार ,रूप रंग , संस्कार ,शिस्ताचार और पाक कल में निपुडता ….उसे समाज में वोह महत्व और स्थान  देती थी…जिसे देख अच्छे अच्छे धनवान और सुदर्शन युवक ….उसके गुणों पे मोहित हो… उसकी और खींचे चले आते थे !….

पर जब उन्हें पता चलता ….यह रूपवती किसे और के गले का हार है …बड़ी ही मायूसी से अपने दिल को मसोस और कपिल की किस्मत से इर्ष्या कर… सिर्फ आहे भरके रह जाते!….

कपिल भी अपनी पत्नी के उत्तम गुणों से वाफिक था…..इसलिए ….समय समय पे …भगवान के दिए… किसी भी दुःख या दर्द को बिना किसी शिकन के हँसते हँसते सह लेता …क्योकि ,उसे सहारे देने के लिए इतना गुणवान हमसफ़र, जो उसके साथ था!.. …

अचानक पायल की झंकार सुन ….कपिल का मन अपने खयालो से निकल… हकीकत की दुनिया में आगया ….अप्सरा पुत्री मृदुला, धीरे धीरे कपिल की तरफ आ रही थी! ….

के बदन से उठती खुशबु ….जब कपिल के नथुनों से टकराई तो उसकी सांसो ने तीव्र गति पकडनि शुरू कर दी…..उसका पोरश अपने अस्तित्व से लड़ता हुआ ….अपने रोद्र रूप को दिखाने के लिए बैचेन होने लगा! ….

जैसे जैसे मृदुला की पायल की झंकार और उसकी सुरीली आवाज कपिल के नजदीक आती गई ..उसकी आवाज कपिल के कानो में इक झंकार बन उसके मन को मतवाला करने लग गई!…..

अचानक ,कपिल की आँखों में रंगीन सपनो के महल बनने लगे ,जो गुलाबी डोरों की सूरत में, उसकी आँखों में तैरने लग गए …..

मृदुला….कपिल के नजदीक आकर बैठ गई ..और उसे देख… मुस्कुराने लगी …शायद  वोह भी जानती थी ….की उसके रूप की तपिस से … कपिल कैसी जलन और तडप महसूस करता है!….

उसपे, उसका श्रृंगार और उसके बदन से उठती मदहोश करने वाली खुसबू ….कपिल को.. उसके आगे निहायत ही कमजोर और लाचार कर देती …

मृदुला को अपने पास आते ही अपने आलिंगन में ले लिया और उसके गुलाबी कपोलो को चूमने लगा…की.. अचानक मृदुला ठिठक कर पीछे हट गई और कपिल से शिकायत भरे लहजे में बोली …..

तुम सिर्फ मेरे रूप और योवन के दीवाने हो …. तुम ,मुझसे सच्चा प्रेम नहीं करते ..क्यों क्यों? ….तुम्हारा पोरश ..मुझे देख बेकाबू हो जाता है ..क्या तुम्हे अपने ऊपर थोडा भी नियंत्रण नहीं? …

यह कैसी प्रेम अग्नि है ?…आर्य पुत्र ….जो रूप की जवाला से जल उठती है …

कल मैं अगर रूपवती ना रहूंगी…..तो क्या ..तुम मुझे इतना ही प्रेम करोगे ?

कपिल ने, मृदुला के गुलाबी कपोलो का रसपान किया और उसके दहकते होटो से अपने प्यासे होटो को अमृत पिलाने लगा …मृदुला के होटो से थोडा सा मधुर जीवन पाने के बाद, उसने अपना ध्यान मृदुला के चेहरे की तरफ लगाया और उसके चेहरे को अपने दोनों हाथो में लेकर बोला …

.रूप और योवन तो ….जीवन का नियम है …आज मैं और तुम दोनों जीवन के उस दौर में हैं जंहा हमें अपनी खुबसूरत यादे संजो कर रख रहे है…जो आने वाले जीवन का सहारा होंगी…आज मेरा शरीर, इस मन से संचालित है ..कल यह मन हमें.. इस शरीर की …इन मीठी यादो के सहारे जोड़े रखेगा ….शरीर के मिलने से, जो आनन्द, मन को आज मिल रहा है ..उसे मन ,इक पूंजी समझ कर, तेरे मेरे ह्रदय में इकठा कर रहा है ….

मेरा प्रेम, तेरे रूप के साथ तेरे ह्रदय से भी जुडा है ….यह सत्य है की.. में तेरे, सौंदर्य,रूप और योवन का दीवाना हूँ …पर सुन्दरता का भी अपना इक रहस्य और अर्थ है …की, हम अपने शरीर की उन सारी इन्द्रियों की परीक्षा लेल ले… जो हमें इस प्रक्रति ने दी है! …

जैसे बाल्य अवस्था में बच्चा , मुंह में हर चीज डालता है और जब वोह चलना सिख जाता है ..तो निरंतर इधर उधर बिना देखे दौड़ता है ….उसके हाथ, हर चीज को छूना चाहते है… बच्चा…वक़्त आने पे समझता है की पैर चलने के लिए,हाथ काम करने के लिए ,मुंह खाना खाने के लिए और जुबान बोलने के लिए है …

वैसे ही मानव विकास में और इन्द्रिया ..योवन के वक़्त सक्रीय होकर हमें सन्देश देती है ..की उनका क्या अर्थ है ….मानव बचपन से लेकर योवन तक आते आते.. अपना समय सिर्फ इन इन्द्रियों से सिखने में बिता देता है ..की ..क्या उसे समझना है, क्या करना है और क्या उसके लिए सही और गलत है ?…

पर इन सब इन्द्रियों को इक साथ जीवन में प्रयोग में लाकर, उन्हें वोह कैसे जाँच ले ..यह सीखना उसके लिए रहस्य ही रहता है …

मनुष्य के पास 6 इन्द्रिय है ….जैसे …. आंख , नाक , कान ,मुंह , मस्तिष्क और भावना(ह्रदय)…वोह इनको अलग अलग समझ कर… इन इन्द्रियों को उपयोग करना सीख तो जाता है …पर… ऐसी कोई किर्या नहीं… जिसमे ये सारी इन्द्रिय इक ही वक़्त में सक्रीय होकर अपनि छमता का मूल्यांकन कर सके…..यह सारी इन्द्रिया असल में ….मानव के अन्दर इक असीमित उर्जा का निर्माण करती है… अगर यह उर्जा उचित तरीके से उत्सर्जित  ना की जाये तो विनाश का कारण भी हो सकती है …

तेर चलने से…तेरी पायल की छम छम करती झंकार और गायन से निकली मीठी वाणी ….मेरे कानो में इक मधुर संगीत उड़ेलती है ..जो कानो से होता हुआ…सीधा मेरे ह्रदय में उतर जाता है…..

तेरे बदन से निकलती मदमाती खुशबु, मेरी नाक से होकर मेरे चिंतन को भाव विभोर करती हुई सीधा मेरे मस्तिष्क पर प्रभाव डालती है …जिससे मेरा मस्तिष्क इक आनंद का अनुभव कर शांत चित हो जाता है! ….

तेरा आलिंगन…. मेरी आत्मा को वोह सकून देता …जिससे मेरा मन सिर्फ तेरे इर्द गिर्द सिमित रह कर…. इधर उधर मचलने या बहकने से रूक जाता है! ….

तेर रूप और श्रृंगार को निहारा कर .. .मेरी आँखे मे इक जोश और शक्ति का प्रवाह होता है ..जिससे मैं, दुनिया के कष्टों का बिना डरे सामना कर पाता हूँ! …

तेरी सांसो में मेरी सांसे घूलमिल कर…. मेरे रक्त का प्रवाह बढ़ा देती है …जो मेरे अन्दर इक अद्रश्य शक्ति का संचालन करता है …जो मेरे शारीर की हस्ट पुष्टता के लिए अति महत्वपूर्ण है! …

मेरे होट.. तेरे होटो का रसपान कर …. जो तृप्ति लेते है ……वैसी  तृप्ति अमृत पीने के समान होती है ….सच तो यह है की ..अमृत का अर्थ सिर्फ किसी रूपसी के होटो का रसपान करने वाला रसिया ही बता सकता है … की दुनिया में अगर किसी को कंही से जीवन दान मिल सकता है ..तो वोह तेरी जैसी रूपवती के होटो के सिवा और कंही से संभव नहीं हो सकता !…..

इसलिए ….मैं इस अमृत को नित दिन पीकर ..अपने को इतना मजबूत और शक्तिशाली बना लेता हूँ की …मुझे दुनियादारी में कोई भी कार्य और चुनौती कठोर और असम्भव नहीं लगती !….

जिस अभागे ने यह अमृत नहीं पिया ….वोह जीवन में …सिर्फ कडवे वचन ही बोलेगा …

सच तो यह है की….तेरे योवन की तपिस से …. मेरी इन सब इन्द्रियों में इक नयी उर्जा का संचार होता है!!.…

हे रूपसी जरा सोचो …

अगर मेरी आँखे कुछ विभीत्स या असुंदर देखंगी तो मेरे मस्तिष्क और ह्रदय में पैदा हुई उर्जा मुझे बुरा सन्देश देगी और मेरा मस्तिष्क कुछ बुरा कर सकने के लिया अनजाने में ही तैयार हो जायेगा !…

अगर ,मेरे कान कर्कश वाणी सुनेगे ….तो मुझे रुखा और कर्कश बोल बोलने की आदत हो जाएगी ….

अगर, मेरा मुख सूरा पान करेगा तो मेरा मस्तिष्क उसका गुलाम बन सही और गलत का भेद भूल जायेगा …

अगर, कोई गन्दी गंध मेरे नथुनों में जाएगी तो ….मुझे अनर्थ सहने और करने का साहस बढ़ाएगी ….

तो यह सब ….मेरे शरीर में ऐसी उर्जा का प्रवाह करेंगी ..जो मेरे अन्दर इक निराशा, आवेग , क्रोध और कुंठा को जन्म दे सकती है ….जिसका मेरे जीवन पे अच्छा प्रभाव नहीं होगा! …

हे रूपवती …पर तेरे आने से …इन सब का सम्मलित मोहक प्रभाव… जब मेरे शरीर पर होता तब मेरा पोरश(मर्द ) …अपने को धन्य समझ कर आनन्दित होकर ..इक मस्त हाथी की तरह झूम कर, तेरे स्वागत के लिए तैयार हो जाता है ….

वोह उस गंध के लिए लालायित होने लगता है ….जिसके आगे वोह अपना मद ,अहंकार ,क्रोध और शक्ति का समर्पण करके …तुझे वो असीम उर्जा दे सके……जो इस श्रृष्टि की रचना में सहायक है और जिससे इस श्रृष्टि का संचालन सुचारू रूप से होता रहे! …..

इस दुनिया में हर चीज या किर्या का विरोधाभास है …जो इक दुसरे के विपरीत है ….पर इक के बिना, दूजे का कोई अर्थ नहीं !…जैसे जीवन-मृत्यु , रात-दिन , द्रश्य-अद्रश्य ,उत्तर –दक्षिण .नारी –पुरुष ,और काम –मोक्ष वैसे ही …इस जीवन में उर्जा सिर्फ दो रूप में है ….जैसे ….सजीव है तो निर्जीव है !….

तेरा योवन, रूप , श्रृंगार और तेरे बदन और  सांसो की  खुशबु …. मेरे शरीर में  निर्जीव पड़ी उर्जा को जगा कर उसे सजीव कर देती है …..जिसे पॉजिटिव एनर्जी के नाम से भी पुकारा जाता है!  ….

मोक्ष का अर्थ है ..त्याग ..और त्याग वो ही कर सकता है ..जिसके पास कुछ हो …जिसने काम में संतुष्टि पा ली …उसे काम का त्याग करने में कोई कठिनाई  नहीं होगी ..पर जिसने काम किया ही नहीं …..वोह उसकी प्रचंड जवाला में जल कर  ,कभी भी, इसकी लालसा में भटक सकता है …जो समाज और व्यक्ति के लिए उचित नहीं होगी !….

जब तक, काम  की पूर्ण प्राप्ति नहीं होती ….मोक्ष का होना असंभव है …जिसने काम को नहीं समझा और भोगा ….. वोह मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता …जैसे रात के बिना दिन का होना संभव नहीं हो सकता ….वैसे ही बिना काम से संतुष्ट हुए , मोक्ष की प्राप्ति असंभव है !….

मेरी सारी इन्द्रिय ….इस वक़्त सक्रीय होकर ….उस उर्जा का निर्माण करती है …जो अगर सही ढंग से और सही तरीके से उपयोग में ना लाई जाए तो …विनाश का कारन भी बन सकती है! ….

यह भी सच है की ,यौवन के मद में चूर तेरा कमसिन बदन… मेरी इस उर्जा की अति आवश्यकता महसूस करता है ….पर वोह ,समझ नहीं पाता, की ….वोह शक्ति उसे कंहा से मिल सकती है?  इसलिए ..तेरा मदमाता योवन ..उस उर्जा की तलाश में भटकने लगता है और इसकी बैचेनी, तेरे स्त्री अंगो से … गंध के रूप में  निकल इस वातावरणमें फैल जाती है …जिसे सूंघ कर ,कोई कामी या दुराचारी…तेरी कमजोरी का नाजायज फायदा उठा कर …तुझे अपवित्र कर सकता है! ….

जिस स्त्री की योवन अग्नि पुरुष के आवेग से शीतल नहीं होती …वोह स्त्री …अपनी ही योवन की जवाला में जल कर ,अन्दर ही अंदर इर्ष्या , कुंठा और क्रोध को जन्म देती है …जो खुद उसके लिए और इस समाज दोनों के लिए हानिकारक होती है! …

इसलिए मैं, अपने धर्म का पालन करते हुए ..तेरे योवन से उठती उस प्रचंड अग्नि को किसी भटकाव से बचाते हुए …उसे पहले ही शांत कर देता हूँ ….. मेरा यह धर्म तेरे प्रति ही नहीं …अपितु इस प्रकृति के लिए भी है …ताकि  दो प्यासे विपरीत उर्जा के बादल आपस में मिल …..इक वर्षा को जन्म दे सके और जीवन गतिमान रहे!….

भाव विभोर हो गई ..उसकी नारी लज्जा ..जो अब तक अपने अन्दर योवन की अग्नि को इक ज्वालामुखी की भांति समेटे थी ..अचानक अपना अस्तित्व को छोड़ते हुए,उसकी नयनो के रास्ते से निकलने लगी …अब मृदुला की आँखों में …इक नशीली चमक उभरने लगी और उसका वक्ष स्थल अपने सिमित आकर को छोड़ …अपने वर्चस्व को बढ़ाने लगा! …..

मृदुला की सांसो में अचानक ….इक मीठी सी गंध का प्रवाह होने लगा और उसके होट…अपने मुख के अन्दर छिपे अमृत को बहार छलकाने के लिए बैचेन होने लगे!….

उसने कपिल को अपने आलिंगन में कस लिया और अपने होटो के अमृत से उसके होटो को जीवनदान देना शुरू कर दिया! ….

दोनों युवा ,अपनी अपनी इन्द्रियों की उर्जा का प्रवाह  इक दुसरे में करने लगे, और  इस जगत को इक स्थायित्व देने लग गए ……

जब दोनों इस मिथ्या जगत में वापस आये तो ..इक रूहानी सकून और मदहोशी के सरुर में झूम रहे थे ..दोनों के शरीर के सारे अंग ….अपनी अपनी उर्जा को दुसरे के अंग की उर्जा से रूपांतरण कर …नयी शीतलता का अनुभव कर रहे थे! ….

कपिल और मृदुला …दोनों शांत चित ..इक दुसरे को आलिंगन कर ..अपने अपने भाग्य पर इतरा रहे थे ….उन्हें इस वक़्त दुनिया की , न कोई खोज खबर थी ..ना ही उन्हें जिन्दगी का कोई रंजो गम याद था और ना  ही उन्हें किसी तरह की शरीरिक पीड़ा या कस्ट का ख्याल था …काम की आंधी के बाद जली जवाला ने दोनों के शरीर और मस्तिष्क की सारी थकावट , परेशानी , चिंता सब को भस्म का दिया था ….काम की आंधी के बाद आई वर्षा ने ….इक ऐसी शांति को जन्म दिया …जिसने उनके सच्चे मोक्ष का दरवाजा हमेशा हमेशा के लिए खोल दिया ….

By

Kapil Kumar

Awara Masiha


Note:- “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.’ ”

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