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आधुनिक युग के धृतराष्ट और श्रवण कुमार ?

Awara Masiha - A Vagabond Angel
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जब कोई इन्सान संतान मोह में इतना वशीभूत हो जाए की उसे सही गलत या धर्म अधर्म में कोई अंतर ना लगे ….तब हम इसे अतिकता को अँधा प्रेम या मोह कहते है… भारतीय इतिहास में जब भी किसी पिता का पुत्र के प्रति प्रेम का जिक्र हुआ ..उन सबमे सबसे पहला नाम सिर्फ धृतराष्ट का ही याद आता है …. धृतराष्ट ने पुत्र मोह में पड कर ….इक पिता की लालसा की वोह ऊँची मिसाल पेश की जिसकी बानगी आसानी से देखने को नहीं मिलती …अगर आप ऐसा सोचते है तो शायद गलत है ..क्योंकी आधुनिक युग के माता पिता महाभारत के धृतराष्ट को चुनोती देते लगते है ….

ऐसे ही रामायण की इक कथा में श्रवण कुमार …उस आज्ञाकारी पुत्र का चरित्र पेश करते है …जो अपने माता पिता के लिए इक ऐसी यात्रा चुनता है ..जो शारीरिक , मानसिक और वय्ह्वारिक रूप से अत्यंत ही दुश्कारी और कठिन थी ….आज के युग में शायद श्रवण कुमार जैसे पुत्र की कल्पना भी बड़ी हास्यपद लगती है ….पर कलयुग का श्रवण कुमार आज भी इस समाज में सतयुग के श्रवण कुमार पे भारी है …अगर आप गौर से देखंगे तो …आज भी घर घर में श्रवण कुमार मिलेंगे यह अलग बात है की ..वोह अपने फायदे के लिए माँ बाप के आज्ञाकारी बन जाते है ….जब बात दहेज़ की हो या बहु को सताने की …

खेर इन दोनों बातो को कहने के पीछे इक बड़ा कारण है जो मैं आगे चल कर स्प्रष्ट करूँगा ….की महाभारत और रामायण के यह दो पात्र अपने अंदर आने वाले भविष्य को कैसे छिपाए हुए है ?

सोचने में और सुनने में थोडा अजीब लगता है ..की आखिर दोनों में क्या समानता है ? अगर आप अपने आस पास नजर घुमा कर देखेंगे तो शायद आप मेरे कहने के मर्म को समझ जाए ….

आधुनिक युग में बहुत सारे माता पिता ध्रतराष्ट जैसे मिल जाये पर शायद आपको इक सच्चा श्रवण कुमार जो माँ बाप की सेवा  सच्चे दिल से करे खोजने में भी ना मिले पर ऐसे बहुत बच्चे मिल जायंगे जो अपने फायदे के लिए श्रवण कुमार का चोला जरुर पहन लेते है  …..

कुछ महीनो पहले मुझे इक बच्चो की रोबोटिक्स टीम का कोच बनने का अनुभव हुआ …इस टीम में भिन्न भिन्न सभ्यता वाले बच्चे थे …इन बच्चो में इक बच्चा बड़ा ही उद्दंड ,शरारती और बदतमीज था ..उसे कोई भी काम दो ..उसे करने के बजाय वोह यह सिद्ध करने की कोशिस करता की ..सब बच्चो में वोह सर्वश्रेस्ट है और उसे सब कुछ आता है …..

जब दिए हुए वक़्त में वोह कुछ ना कर पाता तो ..उसका दोष वोह कभी कोच पे ..तो कभी दुसरे बच्चो पे लगा देता ..उसकी इस हरकत पे मेने उसे कई बार समझाया और उसके पिता को भी उसके इस रविये के बारे में बताया …

खेर इक दिन उसकी बदतमीजी की इंतिहा कर दी और किसी बच्चे के पेरेंट्स ने उसे.. सबके सामने डांट दिया ..बस फिर क्या था ..उसके पिता ने बिना यह समझे की उसके बच्चे ने कुछ गलत किया है …दुसरे बच्चे और उसके पेरेंट्स पे दोषारोपण कर दिया और अपने बच्चे को निर्दोष साबित करते हुए उसे हमारी टीम से अलग कर लिया …

खेर उस भयानक जीव से छुटकारा पा कर सबने रहत की साँस ली…पर मेरे मन में इक बात अटक कर रह गयी …की क्या आधुनिक युग में माता पिता ध्रतराष्ट की तरह पुत्र मोह में अंधे होता जा रहा है की उनके लिए सही गलत का कोई अर्थ नहीं …जन्हा सिर्फ उनकी संतान ही सब कुछ है …..सही और गलत के कोई मायने नहीं ??

देखने और सुनने में यह अतिवादी जान पड़ता है …पर सच्चाई यह है की आज कल माँ बाप में अपने बच्चो खासतौर से लडको के प्रति अँधा मोह उमड़ पड़ा है ….कन्या भूर्ण हत्या , दहेज के लिए बहु को जलाना या सताना …उपरी तौर पे देखने में यह अलग थलग जान पड़ते है ..पर इनकी डोर कंही न कंही बेटे के प्रति अंधे मोह से जुडी है ….ऐसा नहीं की सिर्फ लडको के मामले में माँ बाप अतिवादी होते है …बेटी के नखरे हजार फिर भी प्यारी और बहु से उम्मीद की परम्परा का पालन …..

किसी भी घर में आप देख ले बच्चो के प्रति माँ बाप कुछ हद से ज्यादा बच्चो में अपना समय बीताने लगे है …उनके साथ हर जगह खेल , कार्यकर्म और भविष्य आदि में इस कद्र उलझ जाते है ..की वोह अपने लिए समय ही नहीं रखते की उनकी भी कोई दिनचर्या है ..आखिर औलाद के लिए अपने जीवन के हर पल का त्याग कुछ ज्यादा अतिरेकता नहीं ?

वही माँ बाप ..जब अपने बच्चो की शादी करते है तो उनके द्रष्टिकोण भी बदल जाते है …बहु के लिए बंधन तो बेटी के लिए आजादी उनके पर्यावाची है ..बेटा भी अपने फायदे के लिए श्रवण कुमार का अवतार ले लेता है ..जन्हा मूक सहमती हर समस्या का हल बन जाती है …

आज के समाज में फैलता भ्रस्ताचार ..इस मोह की सबसे बड़ी निशानी है …अगर आप इन्सान के मनोविज्ञान को समझे ..तो पायंगे की ..इक आम इन्सान कोई गलत काम क्यों करता है ..क्या वोह सब अपने लिए करता है ?…

आपको शायद यह जानकार हैरानी हो ..अधिकतर गलत काम अपने बीवी और बच्चो के भविष्य को सुन्दर बनाने के लिए किये जाते है … चाहे वोह नेता , खिलाडी , फिल्म कलाकार या कोई और हो ..सब अपने बच्चो का भविष्य उज्जवल बनाने के लिए नेतिका का त्याग  बिना किसी हिचकिचाहट के कर देते है और बच्चे भी अपने फायदे के लिए बिना कोई चूं चपड किये..अपने माँ बाप के हुकुम को सर आँखों में ऐसे लेते है जैसे वोह सत युग के श्रवण कुमार हो …

राजनीती, खेल और फिल्म इंडस्ट्रीज में कितने ही उदहारण मिल जायेंगे..जन्हा माँ या बाप ने अपने नालायक बच्चे के भविष्य को बनाने के लिए कितनी ही प्रतिभाओ का गला घोट दिया …

राजनीती में चलता परिवारवाद ..जन्हा नालायक भी देश का भविष्यवक्ता बन जाता है ..खेलो में जन्हा अपने पिता के नाम के कारण इक कम प्रतिभा का खिलाडी भी अनगिनत मौके पाता है और फिल्म इंडस्ट्रीज में तो जैसे परमपरा है की … आप अपने माँ बाप के उतराधिकारी होंगे भले ही आपकी अक्ल शक्ल-सूरत और प्रतिभा शून्य हो …

कुछ  खानदान तो अपने आप में मिसाल है ..की आपकी प्रतिभा क्या है …बस इक सर नेम ही काफी है और ना जाने कितने क्रिक्केटर के बच्चे ..जो बिना किसी मेहनत के आसानी से मौके पे मौके पाते रहते है …इसके विपरीत इक आम इन्सान जिसमे प्रतिभा है ..भटकता रहता है ..सिर्फ इक मौका पाने के लिए …

अब यह सब माँ बाप क्या ध्रतराष्ट की परम्परा का प्रतिनिधि नहीं करते …जंहा पुत्र मोह के आगे सब कुछ बेमतलब और बेकार है ?

और बच्चे जो अपने फायदे के लिए इन भविष्य को अपना लेटे है क्या सच्चे श्रवण कुमार नहीं ?

By

Kapil Kumar

Awara Masiha


Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental. Do not copy any content without author permission”

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