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चींटिया !

Awara Masiha - A Vagabond Angel
Awara Masiha - A Vagabond Angel
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मैं (कपिल )जल्दी जल्दी सीढियाँ चढ़ता हुआ अपने कोर्ट रूम की तरफ जा रहा था …आज मुझे इक फ्रॉड केस में सरकार की मदद करने के लिए बुलाया गया था .. किसी प्राइवेट म्यूच्यूअल फण्ड ने कुछ ही दिनों में अपने को दिवालिया घोषित कर जनता का पैसा डकार लिया था  ! हमारे डिपार्टमेंट को शक था की वोह पैसा अब भी उसी म्यूच्यूअल फण्ड के किसी इन्वेस्टमेंट में लगा हुआ है और वोह सामने होते हुए भी हमें दिखायी नहीं दे रहा …

इस केस के लिए मेने कई दिन की मेहनत के बाद इक रिपोर्ट तैयार की थी जिससे साफ़ जाहिर था यह घपला पूरी समझदारी और जान बुझ के किया गया था .. फण्ड मेनेजर ने पैसा ,किसी ओवरसीज अकाउंट में किसी NGO को डोनेशन के नाम पर छुपाया हुआ था … खेर, केस में कोई ज्यादा दम नहीं था और हम फण्ड वालो को पूरा नंगा करने के लिए कोर्ट में तैयार थे …. सीढियों पे चढ़ते चढ़ते , मेरा सामना “सोफिया ” से हो गया .. हम दोनों इक दुसरे को देख चौंक गए ..

सोफिया चिल्लाई ..हे कपिल … ! कान्हा थे इतने दिन ?…

मेने  उसे देख हाथ हिलाया और उसे जल्दी से इक हग देकर बोल , अभी टाइम नहीं है कोर्ट केस का टाइम हो गया, तुम मुझे 12 बजे के करीब यंही बहार मिलो ,जल्दी जाना है … वोह बोली कौन से रूम में हो … मैं  जल्दी जल्दी दौड़ता हुआ चिल्लाया रूम 203 में मेरा केस है 12 बजे यंही मैं इंतजार करूँगा और ऐसा कह मैं  सोफिया से बिना कुछ कहे सुने वंहा से चल दिया ….. कोर्ट रूम में आकर मेने  अपने केस लड़ने वाले वकीलों के ग्रुप से कुछ सलाह मशविरा किया और उन्हें अपनी रिपोर्ट सोंप दी!

जज के आने पर केस की करवाई शुरू हुई… की …मैं बचाव पक्ष (म्यूच्यूअल फण्ड ) के वकील को देख चौंक पड़ा .. उनका केस “सोफिया ” लड़ रही थी … मुझे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ ..

जो लड़की कल तक किसी का “1 सेंट “भी अपने उप्पर न रखती थी …..

जो हर हफ्ते गरीबो को अपने पैसो से खाना खिलाने जाती थी .. वो जानते बुझते इतने बड़े फ्रॉड केस को कैसे लड़ सकती है ...

उसे केस रिप्रेजेंट करते देख मुझे उसके साथ बिताये वोह लम्हे याद हो गए ,जो हम दोनों ने “होवार्ड ” में इक साथ बिताये थे …

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इंजीनियरिंग करने के बाद अपने भविष्य को उज्वल करने के लिए मेने “GRE” और “Toffel” का एग्जाम  दिया और सोचा ,की जैसा स्कोर आएगा उसी के हिसाब से अपना भविष्य तै कर लेंगे ….खेर काफी यूनिवर्सिटीज में अप्लाई करने के बाद मुझे “होवार्ड ” से “MS” करने का ऑफर मिल गया … मेरी ख़ुशी का ठिकाना न था .. पर यह ख़ुशी जल्दी ही काफूर हो गयी .. जब उनके लैटर में यह लिखा था .. की मुझे शुरू के 6 महीने अपनी फीस और रहने की वयवस्था खुद करनी है … उसका खर्च देख मुझे बेहोशी आगई ….

मुझ जैसे गरीब के पास अमेरिका जाने का हिसाब किताब ही मुश्किल से 2 साल की नौकरी मे बना था .. उसमे इन एग्जाम को तैयार करने और देने  और कॉलेज अप्लाई करने का खर्चा …

उसपे ,बिना स्कालरशिप के तो मेरा जाना मुनासिब न था …मेने 1/2 महीने के खर्चे के लिए तो पैसे जोड़ रखे थे पर 6 महीने बहुत बड़ी बात थी .. उस ज़माने में बैंक वाले भी पुरे प्रोफेशनल होते थे ,जो लोन, हम जैसे गरीबो को तो देने में 50 कागजी करवाई करवाते थे .. किसी तरह हाथ पैर मार , कुछ लोन ले , कुछ उधार ले …मैं अमेरिका आ गया …

और यंहा (“होवार्ड “) मेरी मुलाकात सोफिया से हुयी थी हम दोनों जल्दी ही अच्छे दोस्त बन गए… शायद मुफलिसी हम दोनों की इक कॉमन दोस्त थी ! वोह फटेहाल डाइवोर्स माँ बाप की औलाद थी और मैं इक फटेहाल बड़े परिवार का अकेला जल सकने वाला चिराग .. हम दोनों अपने टीचर्स की चमचा गिरी में लगे रहते की …हमें कुछ जूनियर क्लास पढ़ाने को मिल जाये तो कुछ पैसो का बंदोबस्त हो जाये .. सोफिया का होवार्ड में लॉ (कानून की पढाई )का  तीसरा साल था और मेरा यह पहला तो उस जैसी दोस्त से मुझे सलाह मशवरा के अलावा और कई चीजो में बहुत मदद हो जाती थी …….

खेर, केस में ज्यादा दम नहीं था और न ही सोफिया पे ज्यादा दलील .. शायद उसे भी पता था केस हारना तैय है…

पर उसकी कंपनी चाहती थी की उन्हें फाइन कम से कम लगे और उनका फ्रॉड छोटे से फाइन की आड़ में छिप जाये ..पर मुझे देख शायद ..सोफिया ने बिना लड़े ही अपनी  हार मान ली थी …. जन्हा केस ख़त्म होने के बाद मैं जब चैम्बर (कोर्ट रूम ) से बहार आया तो कोर्ट की बिल्डिंग का  गलियारा पूरा खाली था , मेने इधर उधर जाकर विजिटर रूम में भी देखा पर सोफिया का कंही अता पता न था .. थोडा सा मायूस चेहरा लिए मैं कोर्ट से बहार आगया .. ना जाने क्यों आज इतना बड़ा केस जितने के बाद भी अपने को हारा हुआ महसूस कर रहा था .. जैसे ही मेने सडक पे इक टैक्सी को देख हाथ बढाया…. की …इक लिमोजीन (बड़ी लम्बी सी कार ) मेरे पास आकर रुकी और इक हाथ ने मुझे अन्दर आने को कहा . मैं कुछ विस्मित सा उसे देख ही रहा था की अन्दर से सोफिया की आवाज आई ..

अरे कपिल .. अन्दर आजाओ …सोफिया को देख मेरे चेहरे पे ऐसे रोनक आगई जोसे मुरझाते गुलाब को नया पानी जीवन दान के रूप में मिल गया .. मैं झट लपक कार के अन्दर घुस गया …

आज से पहले मेने लिमोजीन सिर्फ सडक पर चलते देखि थी… पर उसमे बैठने का सोभाग्य आज मिला था .. कार ,क्या थी पूरा चलता फिरता इक छोटा सा ऑफिस थी .. जिसमे दोनो  तरफ  छोटे से सोफे थे और बिच में इक बार टेबल और पीछे की तरफ इक फोल्डिंग बिस्तर नुमा  सोफा सा था … मैं अपनी नजरे इधर उधर घुमा रहा था की सोफिया ने मुझे टोका ….

लगता है आज भी तुम्हारी आदत बदली नहीं .. कल भी तुम मुझे ढंग से देखते तक ना था और आज भी इधर उधर तांक झांक  में लगे हो …मेने उसे नजर उठा कर देखा .. तो वाकई में उसकी शिकायत वाजिब थी ..

वोह आज भी अपनी उम्र को चुनोती देती लगती थी .. सोफिया इक पोने छे फीट की लम्बी दुबली  पतली बहुत ही खुबसूरत लड़की थी .. जिसके ऊपर उस ज़माने में उसकी लॉ क्लास का हर लड़का कुर्बान था .. ना जाने क्यों उसे मुझ जैसे घसीटे की दोस्ती गवारा थी .. जबकि मैं देखने में साधारण और जेब से फटेहाल था ….

कई बार तो चाय नाश्ते के बिल भी सोफिया ही देती थी ……

उसका दिल रखने के लिए मेने बोला …अरे तुम तो बहुत खुबसूरत लग रही ही .. लगता नहीं की हम आज 20 साल बाद मिल रहे है तुम्हरी खूबसूरती तो पहले से भी ज्यादा बढ़ गयी …

उसने मुझे घुर कर देखा और मुस्कुरा के बोली ज्यादा फैकने के जरुरत नहीं .. तुमने मुझे बताया क्यों नहीं की तुम न्यूयॉर्क आ रहे हो…. कम से कम तुम से तो मैं यह केस पहले डिस्कस कर लेती तो हमारी फर्म का नुकसान बच जाता .. मुझे उसकी यह बात सुन तगड़ा झटका लगा मैं बोल .. तुम्हे मालूम है .. कानून के हिसाब से हमें आपस में  केस से सम्बंधित कोई भी बात नहीं  करनी चाहिए …..

पर तुम तो बड़ी सिधान्त्वादी सोच की इक मदर टेरसा टाइप लड़की थी .. तुम कैसे इतना बदल गयी ? .. वोह बोली पहले यह बताओ …तुम अपनी पढाई छोड़ के बिच में क्यों चले गए ?….

मैं बोला ,मुझे घर की आर्थिक परेशानी के कारण जाना पड़ा .. हमारे घर पे बहुत सारा लोन था .. जो काफी महीने से दिया नहीं गया था और किसी ने मुझे इसके बारे में बताया भी नहीं .. जब बैंक वाले घर की कुडकी करने आगये तो घर वालो ने मुझे अर्जेंट बुलावा भेज दिया और  इंडिया जाने के बाद मुझे बैंक का हिसाब किताब करने में वोह सारा पैसा देना पड़ा जो मेने अपनी पढाई के लिए लोन लिया था .. अब जब पैसा ही पल्ले न हो तो मैं अमेरिका आकर क्या झक मारता .. कब वक़्त बीत गया पता भी ना चला और वक़्त के बहाव ने यंहा लाकर पटक दिया  …..फिर घर  नौकरी के चक्कर  में ऐसा उलझा की कब हिंदुस्तान पीछे छुट गया पता भी ना चला …

पर सोफिया, तुमने ऐसा केस क्यों लड़ा? …मेने बड़े आश्चर्य  से पुछा …

वोह हंसी .. तुमने अपने घर के लिए अपना करियर बर्बाद कर दिया .. और मेने अपने हस्बैंड के लिए अपना जमीर …..

उसकी माली हालत ठीक करने के लिए …. मुझे इक बार इक फ्रॉड का केस लड़ना पड़ा और मैं उसमे जीत तो गयी पर अपना जमीर हार बैठी … बस इक बार जीतने  का चस्का लगा की अब सही गलत कुछ रह नहीं गया .. वैसे भी यह मिडिल क्लास तो चींटी  की तरह होता है ….. जिसे सिर्फ इकठा करना आता है ……

उसका इस्तमाल तो सिर्फ  हम जैसे घास के टिड्डे करते है यह चींटियाँ इक इक दाना करके जोडती है और हम इक ही झटके में सारा खाना ले फर हो जाते है ……. …

यह लोग सारी जिन्दगी सपनो के भंर में फसे अपनी गाढ़े पसीने की कमाई जोड़ जोड़ कर इकठा करते है .. …..इनकी आधी  जिन्दगी उस इन्वेस्टमेंट के घाटे को पूरा करने में लग जाती है और बाकी आधी  उसे बढ़ता हुआ देखने में .. ना तो यह उस पैसे को खर्च करते है न उस पैसे का कोई सुख़ भोग पाते है ………

उनका यह पैसा ..हम जैसे अमीर इक ही झटके में हडप कर जाते है इन्हें पता भी नहीं चलता ………..

और ऐसा कह उसने अपनी इक सिगरट सुलगाई और उसका धुवां मेरी तरफ उड़ा दिया ….

उसकी यह बात सुन मैं सकते में आगया .. और सोचने लगा कब यह टिड्डी मरेगी और चींटियो को अपना हिसा इनके शारीर के रूप में वापस मिलेगा .. शायद आज मेने कुछ चींटियो का भोजन तो बचा लिया था .. पर कब तक ?

By

Kapil Kumar

Awara Masiha

Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.’

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