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रेकी हीलिंग ……..साइंस या आर्ट या अजब पहेली ??

Awara Masiha - A Vagabond Angel
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शायद आप में से कुछ लोग इस शब्द से परिचित हो और कुछ इससे पुरे अनजान और शायद कुछ इसके मास्टर भी हो ….खेर इस विषय के ऊपर खूब सुना …कुछ पढ़ा भी और इक दिन दिमाग ने मजबूर किया ….की ..इसका पता लगाया जाए आखिर यह है क्या ?

निचे जो मैं रेकी के बारे में लिखने जा रहा हूँ ..की यह क्या है ?… आप लोगो में से कुछ  को यह मालूम होगा ..पर यह कैसे होता है? ..शायद इसके बारे में मुझे कंही ज्यादा पढने या समझने को नहीं मिला…इसके लिए मेने खुद अपनी इक सोच पे काम किया और उस विचार को मैं यंहा रखने की कोशिस कर रहा हूँ ….

जैसा की हम जानते है यह इक जापानी चिकत्सा पद्धति है … जिसे इक जापानी डॉक्टर ने खोजा था … जिसमे मास्टर या हीलर …अपने शिष्य या पीड़ित या ग्राहक को अपने स्पर्श द्वारा या दूर दराज बैठे किसी व्यक्ति का इलाज कर सकता है ….. रेकी इक जापानी शब्द है …. रेकी को इस तरह से बोला जाता है (Ray–ee-Kee)….. जिसे हिंदी में हम “रे” + “की” में संधि विच्छेद करके भी देख सकते है ….

यंहा पर रे का अर्थ है “अध्यात्मिक” और “की” का अर्थ है “अत्यावश्यक” या अति महत्वपूर्ण उर्जा या एनेर्जी ….

जैसे की विद्वानों ने लिखा है या दावा किया है ….की इसमें हीलर अपने स्पर्श के माध्यम से रोगी के शरीर में उर्जा का परवाह इक तरंग(वेव) के रूप में करता है और रोगी को उस उर्जा से शक्ति मिलती है जिससे वोह ठीक हो जाता है …कुछ रेकी मास्टर दूर दराज से भी अपनी एनेर्जी को रोगी के शरीर में भेज सकते है …..

जितना मेने ऊपर लिखा ..इतना करीब करीब इक आम इन्सान जिसने यह शब्द सुना है उसे पता होगा …पर आधुनिक विज्ञानं इसे नहीं मानता …किसी भी मेडिकल साइंस में इसकी इक पक्की मान्यता नहीं है और ना ही इसके बारे में कोई ऐसा विवरण जिससे इसको समझने और सिखने में आसानी हो ….इसके बारे में कई प्रशन दिमाग में कोंध्ते है?

फिर आखिर यह “रेकी” क्या बला है ? और क्यों इसे कुछ लोगो द्वारा चिकत्सा प्रणाली में मेडिकल के साथ अलग विकल्प के तौर पे देखा या समझा जाता है? …

क्या वास्तव में रेकी से कोई रोगी व्यक्ति लाभावंत हो सकता है ?

क्या यह सिर्फ इक मानसिक संतुसटी का जरिया भर है या इसके पीछे कोई ऐसा विज्ञानं जिसे अभी तक समझा नहीं या समझाया नहीं गया? ….

मैं यह तो दावा नहीं करता की मुझे इस आर्ट को करने का तरीका आता है …वोह शायद मैं किसी दिन सीखूंगा भी ….शायद जब मुझे अपने बेसिक कांसेप्ट का पता चलेगा और मेरा वैज्ञानिक दिमाग इसे समझने के स्थिति में होगा …

खेर इसका कुछ अनुभव मुझे रोगी के रूप में हुआ और उस अनुभव के अनुसार मेने इसकी व्याख्या वैज्ञानिक धरातल पर करने की कोशिस की है ….

सबसे पहले हमें यह समझना होगा ….की हमारा शरीर किस तरह काम करता है ? मनुष्य का शरीर कई तरह की उर्जाओ यानी एनर्जी का सोत्र है और हम जीवन निर्वाह के लिए इन एनेर्जी को भिन्न भिन्न तरीको से जाने अनजाने ग्रहण करते है …..

इक एनर्जी का दूसरी एनर्जी में बदलाव …हमारे शरीर में निरंतर होता रहता है…. जिसे साइंस की भाषा में एनर्जी ट्रांसफॉर्मेशन या रुपंतार्ण कहते है ….

मनुष्य के शरीर में मैकेनिकल , इलेक्ट्रिकल ,चुम्बकीय ,बायो केमिकल ,प्रकाश ,ध्वनि , हीट और कॉस्मिक उर्जा का प्रवेश, रुपंतार्ण और निर्माण अलग लग तरीको से और शरीर की भिन्न  भिन्न अंगो द्वारा होता है ….

दिन में ….इक आम इन्सान भोजन,पानी ,वायु ,ध्वनि और प्रकाश का ग्रहण खाने, देखने, सुनना, सूंघना , सोचना और महसूस करना आदि भिन्न भिन्न कार्य द्वारा करता है…..

भोजन शरीर में जाकर अलग अलग उर्जा का निर्माण करता है …जिससे शरीर सुचारू रूप से चलता रहे …भोजन के अलावा बाकी क्रियाये भी हमारे शरीर पे अपना प्रभाव डालती है ….जिसे हम अधिकतर हलके तौर पे लेते है ….पर कभी कभी इनके आकस्मिक प्रभाव भी हमारे मन , मस्तिष्क पर पड़ते है …

जैसे किसी सड़े-मरे हुए जानवर को देख उलटी का जी होना या किसी आम आदमी का ऑपरेशन थिएटर में बेहोस हो जाना या किसी बहुत ही सुन्दर स्त्री को देख किसी व्यक्ति का अपना होस-हवास खो देना… या सिनेमा हाल में किसी पे अत्याचार देख खून का खौलना या किसी की दयनीय दशा देख आंसू आना आदि ….

ऐसा ही कुछ असर हमारे शारीर में कुछ सुनने और सूंघने से भी होता है …इन सब किर्याओ में मस्तिस्क का इक अहम् रोल है ..जो मानव शरीर को सिग्नल भेज उसे निर्देश देता है …की उसकी प्रतिकिर्या क्या हो ….जैसे शारीर में कम्पन , हाई/लो ब्लड प्रेशर , दिमाग का कुंद होना और शरीर का जडवत हो जाना आदि शामिल है …..

ऐसा ही कुछ प्रभाव हम तब महसूस करते है ..जब कोई आपको छूता है …किसी खुबसूरत कमसिन लड़की का स्पर्श किसी मनचले के लिए क्या मायने है… इसे समझने की जरूरत नहीं …ऐसे ही इक बच्चे के लिए माँ का स्पर्श दोनों के बीच में इक मजबूत बंधन का निर्माण करता है …जिसे दोनों बिना भाषा के समझ लेते है ….

स्पर्श की महत्ता तो हम सब जानते है ..पर यह किसी रोग को ठीक कर दे ..यह समझना थोडा टेढ़ा काम है और उससे भी कठिन यह समझना की कोई व्यक्ति कंही दूर दराज से ऐसी कोई उर्जा भेज दे…जो किसी रोगी को ठीक कर दे ?

मानव शरीर के इर्द गिर्द कई तरह की एनेर्जी उपस्थित होती है जिन्हें हम आम अवस्था में महसूस नहीं कर पाते…यह एनेर्जी दुसरे ग्रहों से उत्सर्जित उर्जा या अत्यंत सूक्ष्म (ना दिखने वाले) जीवो से या इंसानी शरीर को ना सुनने , दिखाई औए महसूस होने वाली धाराओ के प्रवाह के कारण होती है….पर हमारी इन्द्रिया इन्हें संचित करती रहती है …

रेकी हीलिंग में मास्टर इक खास तरीके से अपने आस पास की धारायो को इकठा कर उनको इक दिशा दे कर रोगी के शरीर में प्रवेश कराता है … इसके लिए मास्टर को पहले रोगी की शारीरिक और मानसिक स्थिति का ज्ञान होना अति आवशयक है …

जैसे मेने उप्पर लिखा की ..हमारे शरीर में भीं भिन्न प्रकार की उर्जाओ का निर्माण होता है …अगर इसे हम ऐसे समझे जैसे की हमारा शरीर इक ऑफिस है ..जिसमे कई डिपार्टमेंट है और उसनके काम करना का अपना इक तरीका..उसी तरह शरीर की अलग अलग किर्याये भीं एनर्जी का उपयोग ,रुपंतार्ण या निर्माण करती है …

मानव शारीर में किसी इक किर्या के व्यवधान से …उपरी तौर पे देखने में शरीर पे कोई असर नहीं आता पर अन्दुरुनी तौर पे देखने से इक प्रकार का विकार पैदा होने लगता है ….अधिकतर मानसिक विकार इस श्रेणी में आते है …

जब इन विकारो की मौजूदगी शरीर पे बहुत ज्यादा असर डालने लगती है …तब इन्सान चिडचिडा , डिप्रेसिव . हाइपर और मानसिक रूप से कमजोर होने लगता है …

मेडिकल साइंस में हम इसे मानसिक रोग कह देते है ..पर इसका सही जवाब हमें नहीं मिलता की ..शारीरक रूप से स्वस्थ इन्सान मानसिक रोग की चपेट में कैसे और क्यों आया ?

अगर बहुत खोजे तो मेडिकल साइंस में हम इसे केमिकल एम्बलांस असंतुलन कहते है …अगर गौर से देखे तो यह किसी इक उर्जा का सही रूपांतरण या उत्सर्जन किर्या से हुए व्यवधान का नतीजा भर है …

ऐसे में इक काबिल रेकी मास्टर ,जो वास्तव में मेडिकल साइंस भी जानता है….रोगी के शरीर में आए इस उर्जा के विघ्न को समझ रोगी के शारीर में सही उर्जा का सही स्थान में प्रवेश देकर उसके ब्लॉकेज को खोल या अनियंत्रित हुए उर्जा निर्माण को नियंत्रित कर देता है …

यंहा यह समझने की बात है ….जैसे इक काबिल मनो चिकित्सक अपने रोगी का इलाज उसकी बीमारी की पहचान के आधार पर करता है वैसा ही रेकी मास्टर किसी रोगी का इलाज उसके शारीर के ब्लॉकेज को पहचानकर  कर सकता है …

मेरी जानकारी के अनुसार …..रेकी से मास्टर किसी शारीरक विकार जैसे …. सर्जेरी की जरुरत , इन्फेक्शन आदि के इलाज का संभव होना बहुत कठिन है …

हम रेकी को सिर्फ इक मनोचिकित्सका के विकल्प के तौर पर तो देख सकते है ….जैसे मनोचिकितसक रोगी से बातचीत कर उसकी मानसिक स्थिति का जायजा लेकर उसका इलाज करता है…. वैसे ही इक रेकी मास्टर ..अपने रोगी के शरीर के अलग अलग एनर्जी के पैटर्न को समझ उन्हें व्यवस्थित कर सकता  है ….

यह सब इक खास तरीके के स्पर्श से संभव है जिसमे मास्टर …इक खास तरीके से शरीर के भिन्न भिन्न अंगो को इक नियमित अन्तराल पे छु कर उन्हें उत्तेजित या शांत कर देता है …..

किसी को छुना और उसका ठीक हो जाना..बिलकुल ऐसा ही है जैसे किसी से बातचीत करके उसे अंदर के छिपे दर्द को बहार निकल उसे इक नयी सोच देना …..

मुझे इस स्पर्श के तरीको के मानने में कोई ऐतराज नहीं ..पर मेरा दिमाग इस बात की खोजबीन में लगा ….कैसे कोई हीलिंग मास्टर अपनी एनेर्जी इक स्थान से दुसरे स्थान तक भेज सकता है? …इसकी मेने इक थ्योरी डेवेलप की ….  मुझे नहीं मालुम वोह कितनी सही या गलत है ….मुझे व्यक्तिगत तौर पे कुछ अनुभव हुआ है ..की ऐसा किया जा सकता है …..पर कैसे …..मेरे लिए यह समझना अभी दूर की कौड़ी है …..

इस बात की खोज के लिए मेने ..विज्ञानं द्वारा दिए हुए “मोर्स की”  के सिधांत को अपना बेसिक आधार बनाया …जब तक टेलेफोन का अविष्कार नहीं हुआ था …तब इस तरीके से सन्देश इक स्थान से दुसरे स्थान भेजे जाते थे … आज भी ख़ुफ़िया एजेंसी द्वारा ख़ुफ़िया सन्देश इस तरीके से भेजे जाते रहे है….

मोर्स की …सन्देश भेजने की इक वैज्ञानिक प्रकिर्या है …जिसमे हम अक्षरों को ..किसी इक खास आवाज के द्वारा ट्रांसलेट करते है …

इसे हमें मोर्स कोड भी बोलते है जिसमे अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षरो को इक ख़ास आवाज या चिन्ह या प्रकाश के द्वारा ट्रांसलेट किया जाता है …जैसे चिन्ह में (a= .- , b= -…) और आवाज में अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षरों को इक निर्धारित अवधि की टेप टेप  वाली आवाज करके बदला जाता है……. मोर्स कोड को लाइट के इक खास अन्तराल से जलने बुझने से भी समझा या भेजा जा सकता है……

इक आम इन्सान के लिए मोर्स कोड का सन्देश कोई अर्थ नहीं रखता ….पर जिसे इस भाषा का ज्ञान होता है ..वोह लोग बिना बोले या लिखे अपने सन्देश आपस में आदान प्रदान कर लेते है …..

मेरी थ्योरी के हिसाब से हमारा शरीर भी कुछ एनर्जी का आदान प्रदान इक खास कोड या खास फ्रीक्वेंसी की तरंग या वेव के माध्यम से कर सकता है ….यह तरंग हर व्यक्ति विशेष के लिए अलग अलग होती है …जैसे हर इन्सान के हस्त छाप या दांतों की बनावट या डीएनए या आँखों का रेटिना अलग अलग होता है … मानव शरीर अपने अंदर से साधारण आँखों से ना दिखने वाली इक प्रकाशीय उर्जा का निरंतर उत्सर्जन करता है अध्यात्मिक भाषा में हम इसे मानव का औरा यानी तेज या दिवयज्योती भी बोलते है….

वैज्ञानिक धरातल पे इसे ऐसे समझा जा सकता है जैसे एलेक्टोमाग्नेटिक वेव या चुम्बकीय तरंग किसी इक खास वेवलेंथ से मानव शरीर से उत्सर्जित हो रही है ..इनका उत्सर्जन मानव की मानसिक , शारीरक और अध्यात्मिक अवस्था को दर्शाता है … हर इन्सान में इनकी वेवलेंथ अलग अलग होती है ….

रोगी के शरीर के औरा को एनालाइज कर रेकी मास्टर उसमें मोर्स कोड वाली विधि का इस्तमाल करते ….जन्हा तक मेरी कल्पना और सिधांत कहता  है …इक काबिल रेकी मास्टर कुछ विशेष उपग्रह की एनर्जी के माध्यम से या अपने शारीर के औरा से दूर बैठे किसी रोगी के शरीर में ..कुछ विशेष प्रकार की ना दिखने वाली प्रकाशीय उर्जा को भेज सकता है …जैसे इन्फ्रारेड , अल्ट्रा वायलेट , गामा माइक्रो वेव आदि ….अभी ऐसे कई और फ्रीक्वेंसी पैटर्न है… जिन्हें मानव को साइंस के धरातल पर समझना है …..ऐसी मेरी सोच है ..इसका वैज्ञानिक पहलु ..अभी मेने खोजा नहीं ….

मुझे यह लगता है जिन लोगो को इस कला रिमोट रेकी हीलिंग का ज्ञान है ….वोह इसे छिपा कर रखते है और शायद उनमे वैज्ञानिक द्रष्टिकोण की कमी होने के कारण वोह इसे किसी दैवीय शक्ति का वरदान समझते है …अगर इस ज्ञान को वैज्ञानिक पहलु से खोजा जाए तो …इसे सिखने और समझाने में आसानी हो ….

इसे अधिक विस्तार से समझने और समझाने के लिए पहले मुझे रेकी कला समझनी होगी ..तभी मैं  अपनी बात को कोई ठोस आधार दे पायूँगा ….

पर मनुष्य का उर्जा को इक स्थान पे दुसरे स्थान पे किसी दुसरे मनुष्य के शरीर में  भेजा जाना संभव है ऐसा मुझे लगता है ….क्यों और कैसे??..यह मैं अभी नहीं जानता??? …

BY

Kapil Kumar

Awara Masiha

Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.’ Do not use this content without author permission”

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