- 199 Posts
- 2 Comments
आज ऑफिस में इस महीने का तीसरा फेरवेल जोर्ज का था ….जो पिछले ३५ साल से हमारे आईटी डिपार्टमेंट में काम कर रहा था ..वोह अपना सामान समेट कर इस जगह को हमेशा हमेशा लके लिए अलविदा बोल कर निकलने की तैयारी कर रहा था …..
मेने और जोर्ज ने पहले इक प्रोजेक्ट पे साथ साथ काम किया था तो उससे मेरी जान पहचान थी , दुसरे उसके कुछ रिश्तेदार एशिया से थे…इस नाते हम लोग अक्सर भारत और इसकी संस्कृति के बारे में बातचित करते रहते थे …हमारी बोल चल प्रोफेशनल ना होकर कुछ व्यक्तिगत लेवल पे भी थी …..
जोर्ज इक हट्टा कट्टा ६० साल के करीब का इक खुशमिजाज वाला शक्श था ..जो जिन्दगी अपनी शर्तो पे जीता था …जंहा सब लोग ऑफिस कार से आते …इस उम्र में भी वोह मोटरसाइकिल से ऑफिस आता , रोज दो घंटे जिम में पसीना बहता …उसके डोले तो अच्छे अच्छे नौजवानों को शर्मिंदा कर देते ….
मेने जोर्जे से पुछा ….अरे यार तू तो अच्छा खासा हट्टा कट्टा है …फिर रिटायरमेंट क्यों ले रहा है (अमेरिका में रिटायरमेंट की कोई उम्र नहीं होती ….जब तक आपकी हड्डिय आपको ऑफिस ला सकती है आप काम कर सकते है )….
मेने हँसते हुए पुछा ….क्या बहुत पैसा इकट्ठा हो गया है ?
वोह हंसा और बोला…पैसा तो इतना नहीं है पर मैं जिन्दगी के कुछ साल अपने लड़के के साथ गुजारना चाहता हूँ …
असल में जोर्ज का सबसे छोटा लड़का जो करीब २४ साल का है दिमागी रूप से कमजोर है ….उसका दिमाग अपनी उम्र के हिसाब से विकसित नहीं हो पाया ..इसलिए उसे हमेशा किसी ना किसी की बड़े की जरुरत रहती है ….. जोर्ज बोला तुझे तो पता ही है ..ऐसे बच्चो की उम्र २५/३० से ज्यादा नहीं होती ..तो अब शरीर कुछ ठीक है तो क्यों ना उसके साथ थोडा समय बिताया जाए …..
उसकी यह बात सुन मैं सोच में पड गया की ….कैसे इक बाप अपने बच्चे की ख़ुशी के लिए अपने करियर का दान कर रहा है ….मेने बचपन में श्रवण कुमार की कहानी तो सुनी थी …पर यह पश्चिम सभ्यता में नए तरह का पिता कभी नहीं सुना था …
जोर्ज की बात से मुझे बरांडा की याद हो आई ..जिसका फेरवेल अभी कुछ दिनों पहले हुआ था ..उसने भी अपना रिटायरमेंट उस वक़्त ले लिया था ….जब उसको प्रोमोट किया गया था और उसकी भी उम्र कोई ६० साल से ज्यादा ना थी …अपनी फेरवेल पार्टी में उसने बड़े गर्व से कहा था ….की उसने रिटायरमेंट इस लिए जल्दी ले लिया ..ताकि वोह अपना बचा हुआ वक़्त अपनी अकेली बूढी माँ के साथ गुजर सके ….उसका पति भी उसकी इस काम में मदद करने को राजी था ……
मैं तो सोचता था …पशिम में लोग शायद सिर्फ अपने बारे में ही सोचते है …..भारत में तो पश्चिम की यही छवि दिखाई जाती है …की वंहा लोग सिर्फ मतलबी और अपने लिए जीने वाले होते है ….
मैं सोच विचार कर ही रहा था की ….जोर्ज बोला ..तू अभी तक गया नहीं …क्या तेरा लेट रुकने का इरादा है?….
मैं बोला नहीं बस निकलने वाला ही हूँ ….वोह हंसा और बोला ….हां भाई तू लेट जाए तो भी ..तेरी वाइफ तो तेरा डिनर बना के तैयार रखेगी…तुम लोग तो घर में किंग हो …..वैसे भी भारतीय नारी तो ….पति को परमेश्वर मानती है …. तुम लोग घर का काम तो करते नहीं ..तुम्हारी पत्नियाँ ..तुम लोगो को दोनों वक़्त का खाना और नाश्ता बना कर देती है …
अब तुम लोग हम जैसे तो नहीं जंहा मियां –बीवी दोनों मिल कर खाना बनाये हम लोगो को तो उनके साथ किचन में पूरी मदद करनी पड़ती है …और ऐसा कह उसने अपना चिर परिचित ठहाका लगा दिया ….पर उसके हसने ने मुझे अपनी स्थिति का ज्याजा लेने को मजबूर कर दिया और मैं सोचने लगा …क्या ऐसा है ..जोर्ज जो कह रहा है ….
क्या आज की भारतीय नारी ऐसी है ?
उसकी बात को सुन मेरा ध्यान घर की तरफ मुड़ गया की घर जाऊँगा तो क्या होगा? …..
घर पहुंचा तो …बीवी तैयार बैठी थी ….मेरे घर में घुसते ही चिल्लाने लगी …कम से कम आज के दिन तो समय पे आजाते ..पता है ….आज कर्वाचोथ है .और मुझे कितने काम है ..चलो बस अब कपडे बदलने का वक़्त नहीं है ….हम सब लोग संगीता के घर जा रहे है …
सोचा था घर जाकर चाय पीकर खाना खाता अब यह कौन सा नया फसाद ….की कर्वाचोथ भी दुसरे के घर बने…पहले तो मुझे इन ढकोसलो से सख्त चिढ ..उसपे इन औरतो के नए नवेले नखरे ….
खेर रोते कल्पते संगीता के घर पहुंचे …सोचा ..वंहा कुछ खा पि लिया जाए …. उन लोगो ने कुछ और लोगो को भी घर पे बुलाया था ……
डाइनिंग टेबल पर बाजार से मंगाया हुआ खाना सजा था ….पर मजाल किसी की कोई उसे छू भी ले …बच्चे खाने के लिए अलग मच रहे थे ….पूछना पे पता चला जब तक औरते खाना नहीं खालेंगी …मर्दों को भी खाना नहीं मिलेगा ….यह कौन सा नियम था ….
मेने संगीता से पुछा ..अरे भाई हम लोगो को कहे भूखा मारती हो …तुम लोगो को जब खाना हो तब खा लेना ..मेरा इतना कहना था …की सा औरते मुझपे टूट पड़ी और बोली …
इन मर्दों की लम्बी उम्र के लिए हम वर्त रखे और इनसे थोड़ी देर भूखा भी नहीं रहा जाता ?
अरे हमने तो नहीं कहा की तुम व्रत करो ..अरे तुम खुद भी खाओ और हमें भी खिलाओ …पर मेरे अकेली की आवाज ..बाकी के जोरुओ के गुलाम की आवाज में दब गई ….
इक बोला कपिल ..इक दिन में क्या फर्क पड़ेगा …दूसरा बोला अरे मेने भी वर्त रखा है …तीसरा बोला ..मैं तो बहार से खा चूका हूँ …बीवी को पता ही नहीं …चोथा बोला …अरे यह तो बीवी का प्यार है ..जितने मुंह उतनी बाते …
मुझे समझ ना आया ..जब खाना बहार से कैटरिंग करवाया तो …इन औरतो ने दिन भर क्या किया ?
अभी इसी बात को सोच रहा था ..की …सारी औरते आकर वंहा खड़ी हो गई और बोली …हम लोगो को मंदिर लेकर जाओ ..हमें वंहा पूजा करनी है ….अब ऑफिस से थके मांदे आदमी को चाय पानी का ठिकाना नहीं ..यह नया फरमान …जारी हो गया
खेर कारो का काफिला औरतो का फरमान पूरा करने के लिए मंदिर की तरफ निकल पड़ा …मेरी कार में भी कुछ औरते बैठ गई …रास्ते में उन औरतो की बाते सुन मेरा भेजा चकरा गया …
इक बोली ..मेने तो रवि को पहले ही बोल दिया ….आज मेरी छुट्टी है इसलिए सुबह मैं दे से उठूंगी ..बच्चो को खुद तैयार करे ….दूसरी बोली अरे मेने तो सुबह पहले अच्छे से खा पि लिया ..वरना पुरे दिन कौन भूखा रहता ..अब जब खाना कैटरिंग होना ही ..तो काहे मेहनत करे ….वैसे भी हम लोग तो बहार की बनी रोटी और सब्जी ले आते है ..मुझसे यह खाना वाना नहीं बनता ...
फिर इक बोली अरे …तुम लगो ने आज क्या ख़रीदा? …बस उसका यह बोलना था …सब जैसे चिल्लाने लगी ..अरे मेने तो नया सेट लिया ..दूसरी बोली ..मैं तो हर साल नयी ड्रेस लेती हूँ …इक बोली अरे …मेरा तो पूरा दिन आज मेकअप में ही लग गया …
फिर इक बोली ..इन साले आदमियों के लिए हम कितना मरते है और यही लोग ..हमारी कद्र नहीं करते ….और फिर दो चार गाली देती हुई बोली “ मेल चौविनिस्ट पिग “ …साले मर्द औरतो को अपनी गुलाम समझते है ….इसलिए मेने तो रमेश को बोल दिया …की तेरा भी आज मेरे साथ फ़ास्ट रहेगा और तू ऑफिस भी जायेगा ….इक बोली मेने तो कुछ बनाया ही नहीं ..तो कोई खाता कंहा से ….आज सुबह से ही किचन बंद है ….बस बच्चो को दूध और ब्रेड दे दिया …..
उनकी बाते सुन मुझे समझ ना अर्ह था …की उन्हें किसने कहा था की तुम वर्त रखो ..जा तुम्हारे मन में कोई इज्जत और प्रेम नहीं ..फिर यह ढकोसला करने की क्या जरुरत है ..मैं अभी ऐसा सोच ही रहा था की ..मुझे उसका भी जवाब जल्दी से मिल गया ….
इक बोली यार ..यह फेस्टिवल बढ़िया है ..इस बहाने हम लोगो का मिलना जुलना हो जाता है..इसी बहाने फुल मेकअप और शौपिंग भी हो जाती है …मेने तो आज पूरा मैनीक्योर , पेडीक्योर ..सब करवाया ….वरना कंही जाओ तो बहाने बनाने पड़ते ..अब यह लोग हमसे डर के रहेंगे की हम उन लोगो के बच्चो लिए कितना बड़ा काम कर रही है …विदेश में रहकर भी देश की सभ्यता और संस्कृति को संभाले है …..
उन औरतो के साथ अपनी बीवी की दबी जुबान में बाते सुन मेरे सर चकरा रहा था …की यह है आज की भारतीय नारी …पर मुझे क्या पता था ..अभी असली भारतीय नारी का रूप तो देखना बाकी था …
सारी औरते अपनी नयी नयी साड़ियो के पल्लू संभाले मंदिर में चली गई ..और हम कुछ लोग बहार रह गए उनके ड्राईवर की रह …अभी कार में बैठ ही था की …इक औरत जो नयी नवेली दुलहन थी ..उसकी आवाज मेरे कानो में पड़ी ….
वोह फोन पे अपने नए नए शोहर को हड़का रही थी …की तुमसे जब मेने बोला दिया था सीधे मंदिर ६ बजे पहुँच जाना तो ..तुम्हारी लेट आने की हिम्मत कैसे हुई ….आज घर चलकर देखना …बेचारा लड़का सर झुकाए …उसे मनाने में लगा था और वोह चंडी बनी उसका वध करने में तुली हुई थी…
खेर इन सब भातीय सभ्यता की कर्णधारनियो को मैं वापस घर ले आया …सब मर्द भूख प्यास से बेहाल थे ..पर मजाल की कोई कुछ बोल दे …मर्द तो किसी तरह अपनी भूख दबाये बैठे थे ….पर बेचारे बच्चे ..उन्हें देख तरस आ रहा था …
पर इन शेरनियो के मुंह से निवाला कौन छीन का लाये …यह तो चूहे का बिल्ली के गले में घंटी बांधने जैसा दुशाहस था …
इंतजार करते करते …वोह वक़्त भी आगे ..जब चाँद निकल आया ….सबने अपनी नयी नयी साडी में अलग अलग अंदाज में खड़े हो कर मॉडल की भांति अपने अपने पतियों से फोटोग्राफी कर वाई…बेचारे सब इस उलझन में लगे रहे …चलो घर के अन्दर चलकर खाना तो मिले ….
औरतो ने सबसे पहले खाना अपनी अपनी थालियों में लगाया और बोली पहले हम खा ले ..हम लोग सुबह से भूखे है ….फिर अपने अपने पतियों से बोली …पहले बच्चो को खिला दो …फिर तुम लोग खाना …
उनकी इन हरकतों पे मेरा गुस्सा उबाल खा रहा था …पर लगता था ..किसी और को कोई फर्क ही नहीं पड रहा था …वोह सब तो लगता था जैसे मानकर बैठ गए थे …की उनका अस्तित्व जैसे है ही नहीं …..मेरी भूख तो जैसे मर चुकी थी और बार बार यही सोच रहा था ….क्या आज की भारतीय नारी के लिए तीज त्योहारों का मतलब अपनी शौपिंग , मेकअप और फन बनकर रह गया है…
आज इन भारतीय सभ्यता की देवियों के घर चूल्हा ना जला था (वैसे भी यह लोग किचन भूले भटके से ही जाती थी ) ….बच्चो ने जंक फ़ूड तो कुछ के पतियों ने बहार के खाने से काम चलाया था …..जिनके घर कोई बुजुर्ग था ..वोह भी इनके साथ व्रत रखने को मजबूर था ….
यह कैसा वर्त था ….जिसमे सबको भूखा रहना था ?…..
क्या आज के आधुनिक भारतीय समाज में सभ्यता का मूल्यांकन बदल चूका है ….क्या पूरब की आधुनिक सभ्यता और संस्कृति पश्चिम से बेहतर है ?
Kapil Kumar
Read Comments