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सीता का वनवास !

Awara Masiha - A Vagabond Angel
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रात का प्रथम पहर था प्रभु राम अपने शयनकक्ष के बहार बड़ी ही चिंतित अवस्था में खड़े थे ,  नींद उनसे रूठ  कर कब की उनसे  दूर जा चुकी थी ।

उनके चहल कदमी की आवाज सुन …इक सेवक उनके सामने उपस्थित हुआ और बोला

महाराज की जय हो! ….

प्रभु,

यह कैसी बैचैनी है? आप किस चिंता में मग्न होकर अपने शरीर से खिलवाड़ कर रहे है , आज आपका तीसरा दिन है और आपने भोजन ग्रहण तक नहीं किया ।

आप न तो सोते है और न ही अपने शरीर को आराम देते है बस माता सीता के कक्ष के बहार यूँ , सारा दिन गुजारने का कारण इस सेवक की समझ से बहुत परे है?

प्रभु राम ने इक ठन्डी आह भरी और बोले ,

सेवक तुम्हे कैसे बताये और क्या समझाए ?

सेवक प्रभु राम के समक्ष हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया और बड़े विनीत स्वर में बोला …अगर प्रभु , आप इस योग्य समझेंगे तो…. यह सेवक पूरी कोशिस करेगा की प्रभु की बात को सुनकर और अपनी बुद्धि की छमता अनुसार कुछ हल दे सके …ताकि उससे प्रभु की  पीड़ा कुछ कम हो जाये ।

राम बोले , सेवक ….आज हम जीवन के बहुत बड़े कशमकश में उलझ गए है….हमें समझ नहीं आता की हम …महल में खुशियों के चिराग जलाये या मातम में महल को अँधेरे में डुबो दे …..

आज हमें ख़ुशी और गम दोनों इक साथ मिले है …. हमें इन कुछ दिनों में समझ में आया है की मनुष्य योनी में जन्म लेकर सांसारिक नियम से बंध कर जीवन जीना कितना कठिन है !

प्रभु राम की यह बात सेवक के कुछ समझ न आई ?

पर प्रभु का दिल रखने के लिए उनकी हाँ में हाँ मिलाता हुआ बोला , अगर प्रभु सेवक के दुस्साहस को छमा करे ! तो ….

प्रभु बताये ,आप किस विषय में बात कर रहे है ?

प्रभु राम ने इक गहरी लम्बी सांस भरी और बोले , कुछ दिन पहले राज्य वैध ने देवी सीता का निरक्षण किया था … उनके साथ महल की दाई माता भी थी ।

उन्होंने हमें बताया की देवी सीता ,मां बनने वाली है , तो हमारी ख़ुशी का ठिकाना न रहा….

प्रभु यह तो वाकई में बहुत बड़ी प्रसन्नता की बात है , तो फिर महल में खुशियाँ क्यों नहीं मनायी जा रही?….. सेवक उतावला होता हुआ बोला !

सेवक , तुमने पूरी बात सुने बिना ही अपनी ख़ुशी बता दी , प्रभु राम थोडा नाराज होते हुए बोले ।

छमा प्रभु , आप कहे आप क्या कहना चाहते है , ऐसा कह सेवक चुप हो गया ।

प्रभु राम बोले , सेवक …..राज्य वैध ने कहा है , देवी सीता इस प्रसव कल के दौरान महल में नहीं रह सकती ….

ऐसा क्यों कहा महाराज वैध जी ने?….सेवक ने पूछा ….

राम बोले ,  दाई माता और राज्य वैध के अनुसार , देवी सीता का स्वास्थ्य बहुत ही नाजुक है उन्हें जंगल में किसी आश्रम में रह कर ही अपना प्रसव काल गुजरना होगा ….

सेवक  बोला ! प्रभु यह तो बहुत गंभीर समस्या है …..पर ऐसा क्यों महाराज ?

राम बोले…..राज वैध के अनुसार …सीता का जन्म …धरती से हुआ है ….बचपन से जवानी तक ..देवी सीता किसी न किसी करणवश धरती की गोद में खेलती रही है ….

..यूँ तो वोह महलो में पली बढ़ी …पर उनका लगाव सदा ….पशु पक्षियों , पेड़ पोधो और घने जंगलो से रहा …..और  इतना ही नहीं देवी सीता , हमारे साथ 14 वर्षो के बनवास के कारण , जंगल की हवा और पानी की इतनी आदि हो चुकी है की उन्हें  महल की जिन्दगी में स्वस्थ रहना कठिन है अब उनका स्वास्थ्य उन्हें इसकी इजाजत नहीं देता है …..

उसपे उन्हें रावण की कैद में भी इक कठोर जीवन जीना पड़ा…इन सबके कारण उनका शरीर महल में रहने से अस्वस्थ और कमजोर होता जा रहा है …..

राज वैध और दाई माता …चाहते है की …देवी सीता शहर से बहार घने वन के बीच प्रकृति में रहे….तभी वोह स्वास्थ्य लाभ ले पायंगी…. इतना ही नहीं  उनकी  कोख में पलने वाले शिशुयो  के स्वास्थ्य के लिए भी शुरू के कई वर्ष बहुत कठिन है!

प्रभु की बात सुन सेवक असमंज में पड़ गया और हिम्मत जुटा कर बोला …पर महाराज ..आप किसी वन में …इक महल क्यों नहीं बनवा देते ..जहाँ माता सीता और आप आराम से रह सके …

प्रभु राम ने इक गहरी साँस भरी और बोले ….सेवक यह ख्याल हमारे दिल में भी आया था …पर समस्या यह नहीं है ..समस्या यह है …की देवी सीता को इक आम मनुष्य की भांति जीवन यापन करना होगा …उन्हें अपने दैनिक कार्य खुद करने होंगे ….जो महल में रहकर संभव नहीं है …उन्हें इक कठोर जीवन जीना होगा तभी वोह स्वास्थ्य लाभ कर पाएंगी …..

हमें उनके स्वास्थ्य के साथ साथ इस राज्य के भावी उतराधिकारी की भी चिंता है …हम अपनी खुशियों के लिए…. कैसे उनके जीवन को दावं पे लगा दे? …. ऐसा कह प्रभु चुप होगये ….

सेवक के कुछ समझ ना आया क्या कहे और क्या ना कहे …प्रभु राम आगे बोले …

देवी सीता जानती हैं ….की हम उनके बिना इक पल भी न जी सकेंगे ….इसलिए वोह अकेले वन में ना जाएँगी ….अगर हम अपनी पत्नी के प्यार में वशीभूत होकर उनके साथ वन चले जाते है तो …यह राज्य जो इतने वर्षो से हमारी राह देख रहा था फिर से अनाथ हो जायेगा…..यह समाज और राज्य की जनता क्या कहेगी ….की अपनी पत्नी के प्रेम के लिए राजा अपना प्रजा और राज्य के प्रति धर्म भूल गया ….

ऐसी विकट परिस्थिति में ….तो हमारा मानसिक संतुलन पूरा डगमगा गया है , अगर देवी सीता को पता चलेगा तो वोह अपने प्राण त्याग देंगी पर हमारा त्याग न करेंगी …

प्रभु राम की बात सुन सेवक सोच में पड़ गया और बोला छमा करे महाराज …..यह मेरी धृष्टता होगी ….पर …राजा का पहला कर्तव्य की वोह राज्य की प्रजा का कल्याण देखे है …. दुसरे आपको इस राज्य के होने वाले उतराधिकारी के बारे में भी सोचना है …तो इस विकट परिस्थिति में …आपका कर्तव्य है ….की आप माता सीता को वन के किसी आश्रम में भिजवा दे …

जंहा किसी महान ऋषि और वैध की देख रेख में में वोह अपना प्रसव काल पूरा करके स्वस्थ संतान को जन्म दे सके….इस तरह वंहा पर रह कर इस राज्य के भावी उतराधिकारी भी अपना बाल्यकाल और शिक्षा दीक्षा पूरी कर लेंगे… उन्हें भी माता पिता से दूर किसी गुरुकुल में जाना नहीं पड़ेगा …..

प्रभु राम ने इक गहरी श्वास ली और बोले ….सेवक यही तो समस्या है …की हम देवी सीता को वन जाने के लिए कैसे कहे ?

सेवक बोला छमा करे महाराज …..अगर आप मेरे प्राणों की रक्षा का वचन दे तो ..इक ऐसा उपाय है ..जिससे माता सीता वन भी चली जाएँगी और आपको वोह अपने साथ ले जाने की जिद भी नहीं करेंगी ….

सेवक की बात सुन प्रभु राम उछल पड़े और आवेशित होते हुए बोले …सेवक शीध्रता से कहो …क्या कहना चाहते हो …हम तुम्हे वचन देते है ….तुम्हारे प्राण नहीं लिए जायंगे और ना ही कोई दंड दिया जाएगा …

सेवक सर झुका कर बोला ….

महाराज …राजा के लिए प्रजा का न्याय ही सबसे बड़ा न्याय है …कल महल में … मैं इक अपराधी के रूप में आयूंगा और माता सीता के ऊपर कुछ टिप्पणी करूँगा ….जिसे सुनकर आपको न्याय करना होगा …आपका न्याय ही आपके कठिन प्रशन का हल होगा …..

सेवक की बात सुन प्रभु राम का चेहरा लाल हो गया और वोह गुस्से में बोले ….सेवक तुम्हारी हिम्मत भी कैसे हुई इस तरह की बात हमारे सामने करने की ..अगर हमने वचन ना दिया होता ..तो तुम्हारा सर धड से अलग हो गया होता ….

सेवक …प्रभु राम के पैरो में गिर पड़ा और बोला ..महाराज …मेरी जिव्हा काट ले अगर मैं ऐसा अनजाने में भी बोलता ….पर आपकी दिन रात की बैचेनी ….मुझसे देखि नहीं जाती …फिर ऐसा और कोई उपाय भी तो नहीं जिसे माता सीता आसानी से मान ले …..किसी भी नारी के लिए उसकी अस्मिता से बढ़ कर कुछ नहीं होता …..पर मेरी इस ध्रष्टता के पीछे …. इस राज्य का ही नहीं ….माता सीता के स्वास्थ्य और उनके उदर में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य की मंगल कामना का भी स्वार्थ है ….अब इक माँ क्या अपने शिशु और इस राज्य के लिए इतना त्याग करके प्रसन ना होगी ?….

सेवक की बात सुन …राम का क्रोध कुछ कम हुआ ….पर उनका मन कुछ मानने को तैयार ना था …वोह बोले सेवक ….मैं कैसे देवी सीता को फिर से वन में छोड़ दूँ यह मुझसे ना हो सकेगा और ऐसा कह प्रभु इंसानी जज्बातों में दब कर …अपने आंशु बहाते हुए चले गए…

.प्रभु राम को रोता देख सेवक ने मन ही मन इक कड़ा फैसला लिया और अगले दिन …अपनी पत्नी को छोड़ने के अपराध में …इक धोबी के वेश में प्रभु राम के दरबार में उपस्थित हुआ …..

Note :-यांह पर पगट विचार निजी  है इसमें किसी कि भावना को आहात करने का इरादा नहीं है….. इस कथनाक को लिखने का अभिप्राय सिर्फ इतना है …की राम के उस अंतर्द्वंद को समझना की किन हालत में उन्हें सीता का त्याग करना पड़ा होगा ….

Kapil Kumar

Awara Masiha

इस कहानी की प्रेरणा ….इक स्वप्न पे आधारित है……… “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.’

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