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इंसानी दुर्बलताये …सही या ग़लत ??

Awara Masiha - A Vagabond Angel
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आप सबने शायद यह उपदेश जरुर सुना हो की …इक झूट से अगर किसी का भला होता है तो वोह झूट सारे सच से बड़ा हो जाता है …अगर यही झूट सिर्फ दिखावे या धूर्तता या कमीनेपन या चरात्रिक दुर्बलता की निशानी हो तब ?

जब से मनुष्य का विकास हुआ है ..उसने अपने इर्द गिर्द इक सामाजिक ढांचे का ताना बाना बुना ..ताकि वोह अपनी खुशिया , सुख दुःख इक दुसरे से साझा कर सके ….पर विकास की अंधी दौड़ ने जैसे इस ताने बाने के अस्तित्व पे ही प्रशन चिन्ह लगाने शुरू कर दिए ….

इन्सान ने ऊँची ऊँची इमारते तो बना ली पर उसका दिल उतना ही छोटा होता चला गया …उसने बड़े बड़े हाईवे तो बना लिए पर उसका द्रष्टिकोण संकुचित होगया …..धन एकत्रित करते करते ..चरित्र जैसे गोण हो गया ….जिसे कलतक  नैतिकता के तराजू में स्थान ना था …आज वोह प्रैक्टिकल हो गया …

अगर यह पुछा जाए की इक आम इन्सान सबसे ज्यादा कौनसा गलत काम बिना झिझक और पुरे विश्वास के साथ करता है ?

तो मुझे पूरा विश्वास है की …झूट बोलना इन सब मे सबसे अव्वल आएगा …

शायद ही कोई इन्सान हो जो झूट ना बोलता हो …..पर झूट बोलना तब इक मानसिक विकार बनने लगता है जब यह बिना किसी मकसद और बेमतलब के बोला जाए या यह किसी इन्सान की आदत में इतना घुल मिल जाए की …उस शक्श को यह अंदेश ही ना रहे की वोह क्यों और कब झूट बोल रहा है ??

मुझे इक आम इन्सान की इस कमजोरी से कोई शिकायत नहीं या उन लोगो से भी कोई गिल्ला शिकवा नहीं जिन्हें मैं अच्छी तरह से नहीं जानता …पर यह दर्द तब बढ़ जाता है .. जब आपसे वोह लोग झूट बोले… जिन्हें आप अपने बहुत करीबी समझते है और झूट भी ऐसा की जिसके पावं ना हो और जिसकी कोई जरुरत ना हो ?

मुझे याद है आज भी वो दिन ….मैं और मेरा दोस्त संदीप कॉलेज ख़त्म करने के बाद

अपनी अपनी नौकरियों में मस्त थे ….हम दोनों और अच्छी नौकरी पाने की तलाश में हर पल लगे रहते थे …

इक दिन मैं संदीप के घर गया और उससे बोला ..यार मेने इक कंसल्टेंसी से कांटेक्ट किया है ..उनके पास कुछ बढ़िया जॉब ऑफर है … संदीप ने मुझसे बड़े ही सहज भाव में उस कंसल्टेंसी का नाम पुछा..मेने बिना हिचक उसे बता दिया … संदीप ने अपना मुंह बिचकाया और बोला …मुझे इस कंपनी के जॉब ऑफर की जरुरत नहीं ..मेरी जॉब ठीक है …

मेने कुछ न कहा और बात आई गई हो गई ….अगले दिन उस कंसल्टेंसी का मुझे फोन आया की इक बहुत बड़ी कंपनी में कुछ इलेक्ट्रॉनिक्स इंजिनियर की जरुरत है आप कल वंहा इंटरव्यू देने चले जाए ….मेने उनका अता पता लिया और अगले दिन उस कंपनी के ऑफिस पहुँच गया ….

रिसेप्शनिस्ट ने मुझे कहा की आप उस हाल में चले जाए जंहा सब एप्लिकेंट का लिखित टेस्ट हो रहा है ..मेने अपना नाम और कंसल्टेंसी की इनफार्मेशन दे उस हाल में चला गया …मेने जैसे ही हाल का दरवाजा खोला ..तो देखा उसमे करीब 10 लोग बैठे थे और सबसे आगे की सीट पे संदीप बैठा था ..मै उसे वंहा देख चोंक पड़ा …

खेर टेस्ट के बाद वोह अपनी नजरे चुराए रहा और जब कोई चारा ना रहा तो बड़ी बेशर्मी से झूट बोलते हुए बोला ..अरे मेने सोचा चलो देखा जाए कैसी कंपनी है ??…. मुझे कोई ज्वाइन थोड़े ही करना है …

उसके इस सफ़ेद झूट और मक्कारी पे मुझे गुस्सा तो बहुत आया …पर मुझे यह समझ ना आया …जो आपके इतने करीब हो ..उसे ऐसा झूट बोलने या धूर्तता  वाला काम करने की क्या जरुरत है ? .. यह जानते हुए की उनका झूट इक पल भी टिकने वाला नहीं ?

ऐसे ना जाने कितने वाक्य हम अपनी जिन्दगी में रोज देखते , सुनते या झेलते है …की हमारे करीबी हमसे वोह बाते छुपाते है या हमें कई बार ग़लत सलहा मशविरा भी देते है ..जिसे आप और वोह भी अच्छी तरह समझते है …फिर भी ऐसे लोग अपनी आदत से बाज नहीं आते …आखिर क्यों?

हो सकता है हम भी जान बुझकर ऐसा वयवहार और लोगो के साथ करते हो ?

आखिर कोई इन्सान ऐसा क्यों करता है ?…क्या उसकी यह मानसिक और चारित्रिक दुर्बलता है या उसका चरित्र ही ऐसा है या फिर उसमे सच का सामना करने की हिम्मत नहीं या फिर उसे दुसरे की उन्नति से भय है ??

ऐसा घटनाये हमारे घर परिवार में आए दिन होती रहती है …. ऐसी ही इक घटना मेरे घर में हुई जो मुझे जीवन भर के लिए अन्दर से इक बड़ी टीस दे गई और अपने पीछे इक सवालिया निशान छोड़ गई …आखिर क्यों ??…

मेरी छोटी बहन और मेरी किसी बात पे बोल चल बंद थी ..इक दिन मैं अपनी माँ से फोन पे बाते कर रहा था की ….बातो ही बातो में ..मेरी माँ ने कहा की… छोटी के दूसरा बच्चा होने वाला है ..मेने बड़े ही सहज भाव में कहा अरे ..अच्छी बात है ..पर वोह तो दूसरा बच्चा चहाती ना थी ?

की अचानक मेरी माँ का सुर बदल गया और बोली ..अरे इस बात का जिक्र किसी से मत करियो की मेने तुझे बताया …छोटी ने ख़ास तौर पे मुझे मना किया था ..की यह बात मैं तुझे न बतायुं …अब मेरी हालत अजीब ..की कहू तो क्या कहू …मुझे बहुत ही गुस्सा आया और मैं अपनी माँ से बोला …

मेरे बताने या ना बताने से क्या उसकी गर्भ अवस्था पे असर पड जाएगा ? नों(९) महीने बाद बच्चा जब इस धरती पे आएगा …क्या तब मुझे पता ना चलेगा ? ..फिर इस बात को बताने या छिपाने का क्या अर्थ ? अब मेरी माँ से कोई जवाब ना बन पड़ा ..वोह बोली बस उसने मना किया है ..तू किसी से जिक्र मत करना ….मेने भी बात को खींचना अच्छा ना समझा और उस घटना को भुला दिया …

पर इस घटना ने मेरे सामने इक सवालिया निशान लगा दिया ..आखिर क्यों?….

हम अपने करीबियों या शुभचिंतको से ही इतनी धूर्तता क्यों करते है ?

यह अनुभव मेरा ही नहीं आप सबका भी होगा की ..कई बार आप समझ नहीं पाते की सामने वाला जिसे आप अपना समझते है ,भरोसा करते है और वो ही आप से उन बातो पे झूट बोल रहा है या उन्हें छिपा रहा है .. जिसकी कोई भी कीमत आपकी नजर में है ही नहीं?? और ऐसा नहीं की यह बात वोह शक्श नहीं जानता ….पर फिर भी वो अपना चरित्र दिखाने को या अपनी आदत से मजबूर है ?

अभी हाल फिलाल में इक ऐसी घटना हुई जिसने मुझे सोचने पे मजबूर कर दिया ..की अब तक जिन लोगो ने मुझसे बिना वजह झूट बोला या कोई धूर्तता वाला कार्य किया, वोह तो आम इन्सान थे … भले ही मेरे खून के रिश्ते में या मेरे करीबी थे …

पर जब इक ऐसा इन्सान जो अपने को अध्यात्मिक , करुना का सागर और पवित्र आत्मा बोले और वही शक्श ऐसा करे तब ..प्रशन उठता है …आखिर क्यों ?

मेरी इक मित्र है जो अपने आपको अध्यात्मिक स्तर पे इस दुनिया से जुडा समझती है..उससे मै जब भी किसी छल कपट या बदले की भावना की बात करता या कहता की उस इन्सान ने मेरे साथ बुरा वयवहार किया या किसी ने मुझे चोट पहुचाई  …तो ….वो मुझसे हमेशा कहती की ….

इक अच्छे इन्सान या पवित्र आत्मा को … कभी अपने को निचे नहीं गिराना चाहिए … अगर दूसरा गलती करे तो …हमें उसे छमा कर देना चाहिए आदि आदि …

जब आप इतनी साधारण सी इंसानी दुर्बलता पर विजय नहीं पा सकते …फिर आप कैसे करुना , दया , त्याग , दान ,निस्वार्थ सेवा और प्रेम को समझ सकते है ??

जब कोई मनुष्य वोह सत्य भी नहीं बोल सकता ..जिसमे उसका अहित ना हो …उन लोगो को सही मार्ग दर्शन ना दे सके ..जिन्हें वो अपना कहे …. अपनी धूर्तता का त्याग के सके ..जो उसके सबसे करीबी है …फिर ऐसा इन्सान कैसे किसी अध्यात्म को समझ पायेगा ??

आज के युग में इन्सान कितना खोखला और दोगला हो गया है …की हम छोटी छोटी बातो को इनफार्मेशन समझते है ….उन्हें किसी को बताने या पूछने में अपना फायदा नुकसान का समीकरण बनाते है ..यह मैं किसी अजनबी की नहीं ..बल्कि उन लोगो की बात कर रहा हूँ ….जो दिन रात हमारे इर्द गिर्द होते है …

आखिर कंहा है कमी ? कोई हमसे ऐसा वयवहार क्यों करता है ? क्या उन्हें हमारे सामने शर्मसार होने का डर होता है ?

क्या उन्हें लगता है की उनके सच बोलने से हमें उनसे ज्यादती तौर पे फायदा ले लेंगे और उनका नुकसान हो जायेगा ? या फिर …

वोह अपनी झूटी इज्जत या शान को कुछ वक़्त के लिए बचा लेते है …या… हम उनकी नजरो में अपना भरोषा खो चुके है ….

या उन्हें लगता है हम जीवन की दौड़ में कंही फिर से उन्हें हरा तो नहीं देंगे ?

या फिर उनका चरित्र ही ऐसा है और हम उसने कुछ ज्यादा ही आशा लगा बैठे है ….

आप लोगो की क्या राय है ?

Kapil Kumar

Awara Masiha


Note: “Opinions expressed are those of the authors, and are not official statements. Resemblance to any person, incident or place is purely coincidental.’ Do not use this content without author permission”

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