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किसी के अरमानो की कब्र के ऊपर , नया आशियना बसाऊं कैसे …..
तेरी मांग उजाड़ कर , तुझे अपनी दुल्हन बनाऊं कैसे ?
कैसे मिलेगी मुझे भी कोई ख़ुशी..
..
दुसरो को रुला कर , खुद को हसाउँ कैसे ?
अब तो बुझने लगा है मेरी उम्मीदों का भी दीया …..
दुसरो का घर जला कर ,अपनी दिवाली मनाऊं कैसे ?
होता बस में मेरे अब तक, खुद को भी मिटा देता …..
तुझे अकेला छोड़कर , इस दुनिया से जाऊं कैसे ?
थक गई आँखे तेरे इन्तजार में , सांस भी नहीं चलती अब किसी आस में …
इस मुर्दा होते शरीर का बोझ उठाऊं कैसे ?
दिल है की अब भी मानता ही नहीं ….
इसे अब नये बहानों से बहलाऊँ कैसे ?
तुझे भुलाने के लिए , कोशिसे की हजार
आँखों में झोका इस दुनिया का गंद भी कई बार
मन को फुसलाने के लिए , नीचे गिरा कई बार
फिर भी तेरी मूरत को इस दिल से हटाऊँ कैसे
तू ही अब बता तुझे मैं पाऊं कैसे ?
By
Kapil Kumar
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