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बेवफ़ा से वफ़ा

Awara Masiha - A Vagabond Angel
Awara Masiha - A Vagabond Angel
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बेवफ़ा से वफ़ा
जिसके लिए हुए हम कुर्बान , वही अब हम से वफ़ा का सबूत मांगते हैं
यह ख़्वाहिश तो उन बेवफाओं  की , जो हमे ना तो अपना महबूब मानते है
कहते है की तेरी मोहब्बत की कशिश  में , कोई दम नहीं
भला कभी हँसते हुए आशिक भी, दिलरुबा के घर से वापस आते है ….
मैं कब बनना चाहता था मसीहा , तुम्हे तो मेरा इन्सान रहना ही ना गवारा  था
जब मैं बन गया एक  आम इन्सान, क्या मैं अपने ग़म और ख़ुशी का इज़हार  भी कर नहीं सकता …..
बस अब और मत चढ़ाओ , मुझे इस वफ़ा की सूली पर
ग़मों  से बहुत भारी हो चूका है जिस्म मेरा , इसका बोझ अब और उठा नहीं सकता ….
मैं तो अब चिल्ला भी नहीं सकता , मेरी ज़ुबान  तो तुमने पहले ही काट ली थी
फिर तुम्हे मुझपर  है क्यों गुस्सा , की मैं दर्द मैं कर्राह  भी नहीं सकता ……
छोड़ कर इस मतलबी दुनिया को , मैं तो कहीं  दूर चला जाता ,
पास तुमने आने नहीं दिया , मेरा दूर जाना तुम्हे ना गवारा   था ….
अफ़सोस है मुझे ,आज वह लोग मेरे गुनाह  का हिसाब मांग रहे है
जो कल तक कहते थे मुझे काफ़िर ,की मैं सज़दे  को उनकी चौख़ट पर  आ नहीं सकता …
आज उन्हें मेरी मोहब्बत में भी , सिर्फ तिज़ारत  ही दिखाई देती है
क्योंकि उनके क़दमों  में अब मैं , यह टुटा हुआ दिल फिर से बिछा नहीं सकता ….
मुझे तो आदत है बचपन से, इस ज़हालत और बदज़ुबानी की
मत दो यह झूठी इज्जत , जिसका बोझ अब मैं उठा नहीं सकता …
तुझसे कैसा गिला की ,तुने भी अपना असली रंग दिखा दिया
मुझे तो आदत थी यूँ भी लडखडा कर चलने की , तूने भी बस जरा सा मुझे गिरा दिया …..

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जिसके लिए हुए हम कुर्बान , वही अब हम से वफ़ा का सबूत मांगते हैं

यह ख़्वाहिश तो उन बेवफाओं  की , जो हमे ना तो अपना महबूब मानते है

कहते है की तेरी मोहब्बत की कशिश  में , कोई दम नहीं

भला कभी हँसते हुए आशिक भी, दिलरुबा के घर से वापस आते है ….

मैं कब बनना चाहता था मसीहा , तुम्हे तो मेरा इन्सान रहना ही ना गवारा  था

जब मैं बन गया एक  आम इन्सान, क्या मैं अपने ग़म और ख़ुशी का इज़हार  भी कर नहीं सकता …..

बस अब और मत चढ़ाओ , मुझे इस वफ़ा की सूली पर

ग़मों  से बहुत भारी हो चूका है जिस्म मेरा , इसका बोझ अब और उठा नहीं सकता ….

मैं तो अब चिल्ला भी नहीं सकता , मेरी ज़ुबान  तो तुमने पहले ही काट ली थी

फिर तुम्हे मुझपर  है क्यों गुस्सा , की मैं दर्द मैं कर्राह  भी नहीं सकता ……

छोड़ कर इस मतलबी दुनिया को , मैं तो कहीं  दूर चला जाता ,

पास तुमने आने नहीं दिया , मेरा दूर जाना तुम्हे ना गवारा   था ….

अफ़सोस है मुझे ,आज वह लोग मेरे गुनाह  का हिसाब मांग रहे है

जो कल तक कहते थे मुझे काफ़िर ,की मैं सज़दे  को उनकी चौख़ट पर  आ नहीं सकता …

आज उन्हें मेरी मोहब्बत में भी , सिर्फ तिज़ारत  ही दिखाई देती है

क्योंकि उनके क़दमों  में अब मैं , यह टुटा हुआ दिल फिर से बिछा नहीं सकता ….

मुझे तो आदत है बचपन से, इस ज़हालत और बदज़ुबानी की

मत दो यह झूठी इज्जत , जिसका बोझ अब मैं उठा नहीं सकता …

तुझसे कैसा गिला की ,तुने भी अपना असली रंग दिखा दिया

मुझे तो आदत थी यूँ भी लड़खड़ा  कर चलने की , तूने भी बस जरा सा मुझे गिरा दिया …..

By

Kapil Kumar

Awara Masiha

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