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ऐरी छोरी बामण की तेरी कमर खुल्ली होरी से
दरवाजे में तू आन खड़ी ,क्या गर्मी घणी होरी से
उन मर्दो की किस्मत खुल गई जिनकी जोरू थारी जैसी से
पसीने से भी खुसबू उड़ा दे , जब गर्मी से चिपम चिप्पी होरी से
ऐरी छोरी बामण की…..
देख के तेरी यह चिकनी कमर, पड़ोस में ताँका झांकी होरी से
उसपे जल्द्दी से पल्लू गिरा, तेरे मर्द को ऊँगली होरी से
पतले से धागे से टिकी तेरी चोली, खुलने को पागल होरी से
अभी भी बची है तेरी जवानी ,इसकी चुगली खुलम खुल्ला होरी से
ऐरी छोरी बामण की…..
तेरे ये काले बाल, बंधा जुड़ा कमाल, उसपे कंधे बेमिसाल
पतली सी गर्दन धमाल ,उसपे तेरी चिकनी पीठ का ख्याल
ऊपर से निचे तहने चुम्म लूँ , मेने सूखे होठो पे घणी जीभ फेरी से
पीछे से भर लूँ तेरी कोहली , ऐसी खुजली म्हणे होरी से
पलटने को तू भी तैयार , बस तेरे दिल में धक् धक् होरी से
ऐरी छोरी बामण की…..
तोड़ दे यह धागा तू आज , कर दे मुझे उससे आजाद
भर ले बांहो में कस के , कर दे फिर चुम्बनों की बरसात
तेर सांवली कमर कुछ ऐसा,चुपके से म्हणे बोली से
तू कितना भी छीपा ले ,इसने तेरी पोल खोली से
ऐरी छोरी बामण की ,तेरी कमर सब कुछ बोली से
ऐरी छोरी बामण की…..
By
Kapil Kumar
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