Awara Masiha - A Vagabond Angel
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यह गुलाबी रसीले होठ है या छलकता जाम
जिन्हे चुम का मस्त हो जायूँ या पी कर कर लूँ शाम
इन होठों में ढूंढूं अमृत या फिर ले लू कुछ और काम
यह दरिया है ऐसी मस्ती का, जिन में डूबूं या हो जाऊं पार
जब दहकते होठ है तेरे, फिर अंगारो का तुझे क्या काम
परवाने जलते है शमा पर, तुझे चूमूँ तो हो जाऊं कुर्बान
तेरी आँखें है या झील सी खाई , जिनकी गहराई मुझे कभी समझ ना आई
तेरी आँखें है या मस्ती का साया , इनसे भला कौन है बच पाया
जैसे पूछती है मुझसे यह हज़ारों सवाल
इनमे कब डूबोगे मेरे सरताज
तेरे माथे की यह कैसी बिंदिया , जिसने छीनी मेरी नींदिया
जो आती है मेरे खवाबो में
जैसे चमके खंजर किसी सन्नाटे में
मुझे जगा कर पूछती है हर बार
है हिम्मत इतनी की मेरे पास आओगे या फिर मेरी चमक से ही डर जाओगे
By
Kapil Kumar
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