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औरत की अस्मत

Awara Masiha - A Vagabond Angel
Awara Masiha - A Vagabond Angel
  • 199 Posts
  • 2 Comments
औरत की अस्मत
लुटती है औरत, हर सूरते हाल में
कोई दो वक़्त की रोटी और एक  अदद छत की खातिर
तो कोई झूठी  चमक  दमक और  पैसों  के मोह जाल में
तार तार हो जाता है उसका ग़रूर
एक न एक  दिन  किसी शिकारी के जाल में
कभी खोखले  समाज के बंधन और रिश्तों के नाम पर
या फिर दुनिया के बाज़ार में  किसी अंधरे कोने की  शाम में
लुटती है औरत, हर सूरते हाल में…..
कभी मज़बूरी में बेचती है औरत अपना तन
या फिर कोई रोंद्ता है उसका  तन किसी रिश्ते की शान में
बहते है उसके आंसू  आखिर  हर हाल में
कभी अपने मन के दर्द को  मिटाने के लिए
या फिर दिल के ज़ख्मों पर मरहम  लगाने  के नाम पर
लुटती है औरत, हर सूरते हाल में…..
तू अबला बन कर अपनी मज़बूरी की दुहाई दे ले
या फिर कांटो के रास्ते पर  चलकर
दो पल की आजादी जी ले
कभी तेरा बाप या भाई शादी के नाम पर  जहन्नुम भेज  देगा
तु अपनी मर्जी  से ना उड़ सके इसलिए
वक़्त से पहले तेरे पंख  नोच लेगा
या फिर समाज के दरिन्दे तुझे बाजार में  बिठा कर ही  दम लेंगें
मर्द को लूटना है तुझे ,भला वह  कब आजादी से तुझे  उड़ने देंगे
लुटती है औरत, हर सूरते हाल में…..
तेरे अपने भी तुझे चैन से किसी भी सूरत में  ना जीने देंगे
तू महकता फूल है तुझे यह नोच कर ही दम  लेंगें
तेरा पति तुझे नोचगा या  बाहर  के दरिन्दे , तेरी मर्जी कब चलेगी
तुझे लूटना तो हर हाल में ,ऐसी तेरी  किस्मत  जो है लिखी
फिर क्यों ना लुटने से पहले तू भी अपनी औकात सबको दिखा दे
अगर औरत आ जाये  अपनी पर तो दुनिया को झुका दे
कभी कभी औरत भी लूट लेती है मर्द को सरे बज़ार में
फिर क्यों लुटती है औरत, हर सूरते हाल में ….
क्यों औरत के जन्म पर  ही औरत छाती पिटती है
हो ग़र  मर्द पैदा तो फक्र से उसकी छाती फूलती है
आखिर औरत ही क्यों लुटती है दुनिया के बज़ार  में
फिर उसने जन्म  क्यों दिया मर्दों को झूठी  शान में
अपने  बच्चे  को मर्द बनाने की तालीम  भी औरत ही देती है
जब यह मर्द उसे रोंदता है फिर वह क्यों रोती है
लुटने का सबक ही औरत मर्द को सिखाती है
फिर लुटती है औरत, हर सूरते हाल में ….
जब एक  माँ नहीं सिखाती अपने लड़के को औरत की इज्जत करना
फिर इस समाज में अपने  शोषण पर  क्यों मर्द को कोसना
मर्द को दुनिया का पहला सबक उसकी माँ ही सिखलाती है
औरत देवी है या भोगने की चीज
यह  सोच तो बचपन की परवरिश से ही आती है
औरत खुद को लुटाती है दूसरी औरत को गिराने की चाल में
इसलिए अक्सर औरत ही लुटती है हर हाल में …
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लुटती है औरत, हर सूरते हाल में

कोई दो वक़्त की रोटी और एक  अदद छत की खातिर

तो कोई झूठी  चमक  दमक और  पैसों  के मोह जाल में

तार तार हो जाता है उसका ग़रूर

एक न एक  दिन  किसी शिकारी के जाल में

कभी खोखले  समाज के बंधन और रिश्तों के नाम पर

या फिर दुनिया के बाज़ार में  किसी अंधरे कोने की  शाम में

लुटती है औरत, हर सूरते हाल में…..


कभी मज़बूरी में बेचती है औरत अपना तन

या फिर कोई रोंद्ता है उसका  तन किसी रिश्ते की शान में

बहते है उसके आंसू  आखिर  हर हाल में

कभी अपने मन के दर्द को  मिटाने के लिए

या फिर दिल के ज़ख्मों पर मरहम  लगाने  के नाम पर

लुटती है औरत, हर सूरते हाल में…..


तू अबला बन कर अपनी मज़बूरी की दुहाई दे ले

या फिर कांटो के रास्ते पर  चलकर

दो पल की आजादी जी ले

कभी तेरा बाप या भाई शादी के नाम पर  जहन्नुम भेज  देगा

तु अपनी मर्जी  से ना उड़ सके इसलिए

वक़्त से पहले तेरे पंख  नोच लेगा

या फिर समाज के दरिन्दे तुझे बाजार में  बिठा कर ही  दम लेंगें

मर्द को लूटना है तुझे ,भला वह  कब आजादी से तुझे  उड़ने देंगे

लुटती है औरत, हर सूरते हाल में…..


तेरे अपने भी तुझे चैन से किसी भी सूरत में  ना जीने देंगे

तू महकता फूल है तुझे यह नोच कर ही दम  लेंगें

तेरा पति तुझे नोचगा या  बाहर  के दरिन्दे , तेरी मर्जी कब चलेगी

तुझे लूटना तो हर हाल में ,ऐसी तेरी  किस्मत  जो है लिखी

फिर क्यों ना लुटने से पहले तू भी अपनी औकात सबको दिखा दे

अगर औरत आ जाये  अपनी पर तो दुनिया को झुका दे

कभी कभी औरत भी लूट लेती है मर्द को सरे बज़ार में

फिर क्यों लुटती है औरत, हर सूरते हाल में ….


क्यों औरत के जन्म पर  ही औरत छाती पिटती है

हो ग़र  मर्द पैदा तो फक्र से उसकी छाती फूलती है

आखिर औरत ही क्यों लुटती है दुनिया के बज़ार  में

फिर उसने जन्म  क्यों दिया मर्दों को झूठी  शान में

अपने  बच्चे  को मर्द बनाने की तालीम  भी औरत ही देती है

जब यह मर्द उसे रोंदता है फिर वह क्यों रोती है

लुटने का सबक ही औरत मर्द को सिखाती है

फिर लुटती है औरत, हर सूरते हाल में ….


जब एक  माँ नहीं सिखाती अपने लड़के को औरत की इज्जत करना

फिर इस समाज में अपने  शोषण पर  क्यों मर्द को कोसना

मर्द को दुनिया का पहला सबक उसकी माँ ही सिखलाती है

औरत देवी है या भोगने की चीज

यह  सोच तो बचपन की परवरिश से ही आती है

औरत खुद को लुटाती है दूसरी औरत को गिराने की चाल में

इसलिए अक्सर औरत ही लुटती है हर हाल में …

By

Kapil Kumar

Awara Masiha

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