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निर्मल प्रेम

Awara Masiha - A Vagabond Angel
Awara Masiha - A Vagabond Angel
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कपिल ,का बुड्ढा , जर्जर  शरीर   , जो मात्र एक  कंकाल का ढेर था …….. बिस्तर के एक   कोने पर सिमटा सा पडा  था…  डॉक्टर आकर उसे अपनी तरफ से आखिरी बार  देख चूका था  और इशारों ही इशारों   में वह  उसकी आने वाली मृत्यु   का संदेशा   दे  गया था ।…..


कपिल  ने जोर से एक  गहरी  साँस ली और जोर से  आवाज लगाई….. “रागिनी“… “रागिनी”! वह   अपने लम्बे लम्बे काले रेशमी बालो को  नहाने के बाद तौलिये से फटकार रही थी….. की उसके कानों  में कपिल की आवाज पड़ी…वोह दौड़ती हुयी आई और बोली …….कैसे हो जी, उसने कपिल का हाथ अपने हाथों में ले लिया और बोली….. सब ठीक हो जायेगा!…
कपिल ने संतुष्ट  भाव से एक फीकी मुस्कान से उसे निहारा और यमराज  के साथ जाने की तैयारी  शुरू कर दी । उसकी आँखे  मुड़ने से पहले, उसे उस अतीत में ले गई…. जब उसका, रागनी से पहला  परिचय हुआ था!! …….
अचानक किसी के खिलखिलाने   की  आवाज सुन, निढाल और निश्चल  बैठा कपिल का मन, जैसे  चौंक  उठा ..उसे लगा !
जैसे कोई झरना अपना अस्तित्व पहाड़ो से तुड़ाकर,  इस गली में ले आया हो !!…..

जब उस नवयौवना  ने बड़ी ही मीठी झिडकी में उस बच्चे को डांटा …. तो…ऐसा लगा जैसे किसी मधुर अमृत वाणी की बौछार हो गई हो।…..
उसने उत्सुकतापूर्व जब अपनी खिड़की से बहार झाँका तो पाया, सामने वाले बंगले के आँगन में एक  युवती किसी बच्चे से खेल के ऊपर झगडा रही थी।  अचानक युवती ने बच्चे के पीठ पर एक  धोल जमायी और हिरणी  की भांति कुचालें  मार कर घर के अन्दर भाग गई । बच्चा उसके पीछे पीछे दीदी दीदी कहता हुआ चला गया ।युवती तो चली गई पर न जाने उसकी इस भोली हरकत ने…..
कपिल की रेगिस्तान जैसी जिन्दगी में सावन के आने की घोषणा  सी कर दी !!!!!…….

रोज किसी न किसी बहाने कपिल उसे कनखियों से निहार लेता । एक  दिन जब वह  अपनी पत्नी से झगड़ कर अवसाद सा मन लिए अपने घर की छत पर आया ….तो छत पर… उस युवती को यूँही टहलते पाया ।…आज, पहली बार उसे युवती को नजर भर देखने का मौका मिला ।……
वह  20 या 22 वर्षीय एक  सांवले से रंग की ऊँचे कद की युवती थी …… उसके नयन नखस तीखे , आँखे मृगनयनी जैसी ,गर्दन सुराहीदार  और काया छररी  थी । उसके पतले पतले नाजुक होंठ  गुलाब की पन्खुडी की भांति प्रतीत होते थे……… उसके कमर तक फैले काले रेशमी बाल एक  नागिन की भांति उसके सुराहीदार गर्दन से होते हुए उसके वक्षस्थल को ढकते हुए नाभि के पास आकर लहरा रहे थे ।उसकी सांवली त्वचा धुप में  सोने की तरह चमक  रही थी ।

उसके हलके गुलाबी कपोल एक  छोटा सा उभर लिए थे…… जिस पर वह , जब मंद मंद मुस्कुराती तो उसके गालो में पड़ने वाले छोटे छोटे गड्ढे किसी का भी चैन लुटने के लिए तैयार बैठे जाते…. उसका उभरा वक्षस्थल ,नाजुक पतली सी कमर और  भरे हुए कुल्हे  उसके पूर्ण रूपवती होने की घोषणा कर रहे थे ।……
ना जाने…. उसके निर्दोष सौंदर्य  में क्या जादू था की कपिल उसे टक टकी लगाये देखता रहा ।

अचानक से किसी की चुभती नज़रों  को देख युवती शरमा कर वहां  से भाग गई । अचानक उसके जाने से कपिल के मन को ग्लानि  हुई की एक  शादीशुदा होते हुए ! वह  क्यों? किसी परायी स्त्री को घूर रहा था । घर में आकर भी न जाने क्यों कपिल का मन उस युवती के सौंदर्य  के वशीभूत हो बार बार उसके अक्स  का ख्याल ले आता । कभी कभी वह  युवती, जब अपने आँगन में गुनगुनाती तो कपिल के कानो में, ऐसा स्वर आता जैसे के  वीणा के तार एक  मीठी धुन बजा रहे हो .……

यूँही एक  दिन  बातों ही बातों में उसकी पत्नी ने बताया  की सामने कोई नवविवाहित जोड़ा रहने आया है । उसका पति किसी अखबार में काम करता है और युवती का नाम रागिनी है ।जैसा नाम वैसे ही गुण यह सोच कपिल मन ही मन बुदबुदाया…..

अक्टूबर   की हलकी ठंडी के वक़्त, एक  अलसाई सी दोपहर का वक़्त था कपिल अपने घर के आँगन में कुर्सी डाले किसी किताब में मग्न  था ।की उसके कानों  में अचानक एक  सुरीली आवाज आई ।….
क्या आपकी पत्नी घर पर है ?जब कपिल ने नजर घुमा कर देखा तो उस युवती को ,जिसका नाम रागिनी  था  अपने सामने खड़ा पाया । वह  बोला, वह  किसी काम से बाजार गई है । कपिल ने युवती से उसके आने का कारण  पुछा, तो, उसने कहा , उसके घर में गैस ख़तम हो गयी है  और नया सिलिंडर उसे लगाना आता नहीं है…. तो क्या वह  ….उसके घर आकर यह काम कर देगा ।
अँधा क्या चाहे दो आँखे  वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए… कपिल ने कहा, चलिए मैं आपकी मदद  कर देता हूँ ।ऐसा कह  कपिल युवती के पीछे पीछे उसके घर चल दिया, किचन में जाकर उसने खाली  सिलिंडर को अलग कर, भरा हुआ सिलिंडर चुल्हे में  लगा दिया। रागिनी ने उसे धन्यवाद दिया।…..
पड़ोसी  औपचारिकता के नाते उसने कपिल से चाय के लिए पूछ लिया और कपिल का बावरा मन सही ग़लत का ख्याल किये बगैर हाँ कर बैठा….रागिनी . उसे बैठक में बिठा, किचन में चाय बनाने चली गई | कपिल खाली इधर उधर नजरे घुमाने लगा तो उसने कमरे में एक  अलमारी में ढेरों  साहित्य की किताबें  और साथ में कई तरह की नयी नयी वैज्ञानिक खोजों से सम्बंधित किताबों का एक  विशाल संग्रह देखा ।…..
रागिनी  हाथ में चाय की ट्रे लेकर आई तो उसका ध्यान भंग हुआ । चाय की चुस्की  लेते लेते दोनों बातो बातो में मशगुल हो गये , दोनों ने साहित्य , विज्ञान , अध्यात्म न जाने कितने ही विषयों पर गहरी चर्चा की , ऐसे लगता था जैसे दो आत्माए आज अपना परिचय कर रही हैंअचानक कालबेल के बजने से दोनों का ध्यान भंग हुआ ,  भारी  कदमों  की आवाज के साथ , एक  आदमी घर के अन्दर आया । उसने प्रश्नचिन्ह  निगाहों से कपिल और युवती को घूरा । युवती ने हडबड़ा कर  उस आदमी से जो की उसका  पति था कपिल से  यह परिचय कराया ।……
यह मेरे पति अशोक है ।और यह हमारे सामने वाले घर में रहते हैं जिन्होंने आज मेरी मदद सिलिंडर को चुल्हे में लगाने में की …  अशोक ने बड़े ही रूखे ढंग से कपिल से हाथ मिलाया और बिना कुछ कहे अन्दर चला गया । न जाने क्यों ….कपिल को लगा रागिनी अन्दर ही अन्दर कुछ डरी डरी सी है ।…..
कपिल ने रागिनी से विदा ली और वहां  से वापस अपने घर आ गया पर लगता था अपना दिल “रागिनी ”  के पास छोड़ आया!….अगले कुछ दिनों तक कपिल को फिर उस रागिनी के दर्शन नहीं हुए|…..प्रेम ….किसी सीमा-बंधन,  देश,मजहब,आयु ,जात पात और उम्र  से  बंधा नहीं होता ….वह तो एक  बिंदास , आजाद , बेख़ौफ़ ,अल्हड मस्त मौला है ….. कपिल का रागिनी से सामना यदा कदा कभी सब्जी वाले के ठेले पर , कभी दूध के बूथ पर तो कभी यूँही सडक पर निकलते -जाते हो जाता!….
दोनों एक दूसरे  को अंजान   समझ आगे तो बढ़  जाते पर हमेशा पीछे कुछ छूट जाता , उनका प्रेम… बिना किसी भाषा के, मिलन के बावजूद, दिन पर दिन गहरा होता गया….. एक  बीमार होता तो ना जाने कैसे दूसरा बैचेनी महसूस करता…. एक  मुस्कराता  तो दूसरा खुद ब खुद खिल खिला  उठता!!…न जाने किस आकर्षण के तहत दोनों एक दूसरे के शरीर से दूर होते हुए भी मन और आत्मा से करीब होते चले गएऔर बिना किसी रिश्ते में बंधे….वह एक अदृश्य बंधन में बंधते चले गए !…….


जिसकी पहचान आज तक ,इस जगत में ना तो उन मासूमों  को, ना किसी और को थी????…

जब नदी में उफान आ जाये तो वह  सागर से मिलने को बैचेन हो जाती है.. जब जब सागर की विवशता बढ़ जाती है…तो… वह सुनामी का रूप धारण कर नदी को खोजने खुद निकल पड़ता है!……

एक  दिन यूँही  बाजार में सब्जी लेते हुए कपिल को रागिनी फिर मिल गयी, इस बार कपिल ने दिल कड़ा करके उससे पुछा… रागिनी जी कैसी हैं आप ? …..रागिनी ने बड़े ही रूखे स्वर में जवाब दिया… ठीक हूँ …. न जाने उस जवाब में क्या दर्द था… की… कपिल पूछ बैठ… क्या आपके पति को उस दिन मेरा आना अच्छा नहीं लगा?…उस पर रागिनी ने कोई जवाब नहीं दिया और जाने के लिए मुड़ी ही थी की… उसकी गर्दन पर एक गहरा निशान देख कपिल चौंक  उठा !!.. उसने पूछा  रागिनी जी… यह कैसा निशान, क्या आपको चोट लगी है ?…..
न जाने कपिल की बातों  में क्या जादू था या रागिनी से किसी ने भी अभी तक उसकी हालत के बारे में नहीं पुछा था…. वह  सिसक सिसक के रोने लगी….कपिल के कई बार बार पूछने पर…. उसने बताया की उसका पति उसे , एक  पागल की भांति चाहता है , वह  उसका किसी से बात करना तक गंवारा  नहीं कर सकता  और गुस्से में हिंसक हो जाता है । जब उसका गुस्सा ठंडा होता है तो वह उसके पाँव पकड़ लेता  है ।
कपिल को रागिनी की यह हालत देख उसके पति पर बहुत गुस्सा आया और बड़े ही क्षोभ  भरी आवाज में उसने पुछा…,आप ऐसे कैसे जी लेती है??….

रागिनी ने हँसते हुए कहा….. उसने अशोक के साथ विवाह किया है और उसका धर्म है की वह … सात जन्म तक उसकी ही बनके रहेगी और अपने सेवा भाव से उसके क्रोध को कम करके उसे वह  नेक इंसान बना देगी , उसके लिए भले ही उसे कितनी भी प्रताड़ना , कष्ट , आभाव और दुःख झेलने पड़े !! ….

एक  इतनी खुबसूरत ,पढ़ी लिखी , नेक , चरित्रवान स्त्री क्यों और कैसे?आज के ज़माने में किसी के जुल्म सितम का सामना कर रही है…….यह रहस्य कपिल की समझ में ना आया ????
कपिल ने रागिनी को समझाने की बहुत कोशिस की… पर… उसने उसकी एक  न सुनी….कपिल के बार बार कहने पर…. रागिनी झल्ला पड़ी और बोली तुम मेरे क्या लगते हो?… तुम्हारी मेरे प्रति इतनी हमदर्दी का क्या कारण है ?…कपिल…..उसके इस प्रश्न  से निरुतर होगया!…..

शब्द जैसे उसके कंठ में अटक के रह गए….उसने बड़ी बेबस निगाहों से रागिनी को देखा और रुंधे गले से बोला….
मैं जानता हूँ, तुम और मैं शादी के बंधन में किसी दूसरे  से बंधे है, पर है तो वह  बंधन ही, तुम जिसे धर्म, संस्कार और परम्परा का नाम दे रही हो…. वह  सिर्फ… इस जगत में शरीर तक सिमित है उसके बाद क्या?…..

क्या है विवाह? …..सिर्फ कुछ शब्द…किसी अग्नि के सामने बोल देने से, क्या दो आत्माएं  एक दूसरे  की हो जाती हैं? यह कैसा ज्ञान है…..जो यह कहता है की, प्रेम तो सिर्फ आत्मा से  होता है!…….फिर विवाह के नाम पर, किसी को  शारीरिक  हक़ देने से, क्या आत्मा का हक खुद ब खुद मिल जाता है ?……
तुम्हारे पति ने, तुम्हे विवाह नाम के सौदे के तहत सिर्फ ख़रीदा है…. जिसे वह  अपने जीवन की शारीरिक आवश्यकताओं  को पूरा कर सके….क्या तुम्हारे और उसके शारीरक मिलन से आत्माओ  का मिलन हो गया???? क्यों…तुम्हारे बिना बोले, मैं तुम्हारे दिल का हाल पढ़ लेता, क्यों…. दर्द मेरे दिल में उठता और तड़प तुम्हे होती?… हमारा -तुम्हारा सम्बन्ध तो जन्मों  का है…. हमें इस मिथ्या जगत के प्रमाण  की प्रमाणिकता की आवश्यकता नहीं!!!..

इस समाज की सरंचना इन्सान कीखुशियोंके लिए की गयी हैऔर यह समाज हमारी खुशियों के लिए हैं… न की हम समाज की खुशियोंके लिए!!!!….

इस पर रागिनी ने खीज़  कर कहा मैं अपने पति से बहुत प्यार करती  हूँ और यही मेरा धर्म है और मुझे अपना धर्म अपनी म्रत्यु तक निभाना है !!!!!!……. कपिल…. उसकी बात हंसी में उड़ाते हुए बोला..….
विवाह के नाम पर, निभाने को मजबूर,यह यह कैसा प्रेम धर्म है?…जो सिर्फ शरीर से शुरू होता है और बाते इसमें सात जन्मो और आत्माओ के मिलन की होती हैं!!!! जिसे तुम प्रेम कह रही हो वह  सिर्फ एक  गुलामी है….तुम्हारे अन्दर संस्कार के नाम पर बेड़ियाँ इतनी जकड दी गई हैं…. कि… तुम अपने  पति की सिर्फ इक शारीरिक जरुरत भर हो!!! …..
क्या तुम्हारा मन उसके बगैर बैचन होता हैं ?  क्या दर्द उसे हो तो तकलीफ तुम्हे होती है ?  क्या वह  भूखा -प्यासा हो तो शारीर तुम्हारा तडपता है ?….

रागिनी उसके इस प्रश्न  से निरुतर हो गई और बोली मुझे अपना धर्म निभाना है और अगर तुम मुझसे सच्चा प्रेम करते हो तो तुम यह शहर छोड़कर चले जाओगे। और तुम भी अपने गृहस्थ धर्म का पालन पूरी निष्ठा से करोगे।…..
कपिल रुंधे गले से बोला,….. अगर मेरे जाने से और मेरे ऐसा करने से तुम्हे ख़ुशी मिलती है तो मैं ऐसा ही करूँगा!!!….पर मेरी एक  बात याद रखना , अगर मेरा प्रेम सच्चा है तो तुम मुझे जीवन में एक  बार किसी न किसी मोड़ पर फिर मिलोगी और यह कह….कपिल भारी  मन से….“रागिनी ” को अपने पीछे सिसकता हुआ छोड़ चला गया!!!!….
गंगा का पथ, कितना भी पथरीला, दुर्गम  और लम्बा क्यों ना हो, अंत में वह  सागर की ही होती हैं!!…....
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निर्मल प्रेम

By
Kapil Kumar

Awara Masiha

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